ऑस्ट्रेलिया की संसद दो हिस्सों से बनी होती है – हाउस ऑफ रिप्रेजेंटेटिव्स (निचला सदन) और सीनेट (ऊपरी सदन)। दोनों मिलकर कानून बनाते हैं, बजट मंजूर करते हैं और सरकार को जवाबदेह रखते हैं। अगर आप भारत से ऑस्ट्रेलिया में पढ़ाई या काम कर रहे हैं, तो ये जानकारी आपके लिये जरूरी है क्योंकि कई फैसले सीधे आपके जीवन पर असर डालते हैं।
पिछले कुछ महीनों में संसद में कई बड़ी चर्चा हुई। सबसे पहले, जलवायु परिवर्तन से लड़ने के लिये नए कार्बन टैक्स का प्रस्ताव सामने आया। इस कानून का उद्देश्य कंपनियों को साफ़ ऊर्जा की ओर धकेलना है और इससे ऑस्ट्रेलिया‑भारत व्यापार पर भी असर पड़ सकता है क्योंकि दोनो देशों में कई सामूहिक प्रोजेक्ट्स चल रहे हैं।
दूसरा बड़ा बहस था आव्रजन नीति में बदलाव का। सरकार ने क्वालिफ़ाइड वर्किंग स्किल्ड इमीग्रेंट (QWS) श्रेणी को विस्तारित करने की योजना बताई, जिससे भारतीय तकनीकी पेशेवरों के लिये अवसर बढ़ेंगे। इस निर्णय से ऑस्ट्रेलिया में काम खोजने वाले छात्रों और प्रोफेशनल्स को आसानी होगी।तीसरा मुद्दा था रक्षा समझौता। भारत‑ऑस्ट्रेलिया सुरक्षा साझेदारी पर नई विधि पारित हुई, जिससे दोनों देशों के बीच मिलिट्री ट्रेनिंग और समुद्री सुरक्षा सहयोग मजबूत होगा। यह कदम दोनो देशों के व्यापारिक मार्गों को सुरक्षित रखने में मदद करेगा।
अगले महीने संसद में चुनाव का मौसम आ रहा है, और कई नए उम्मीदवार अपने एजेंडा में शिक्षा एवं स्वास्थ्य पर जोर दे रहे हैं। अगर आप भारतीय समुदाय से जुड़े हैं, तो इन नीतियों को समझ कर अपनी आवाज़ उठा सकते हैं – चाहे वह स्थानीय प्रतिनिधि को लिखना हो या सामाजिक मीडिया पर चर्चा शुरू करना।
एक और महत्वपूर्ण बात यह है कि संसद में डिजिटल पारदर्शिता बढ़ाने के लिये लाइव स्ट्रीमिंग की सुविधा भी लागू होगी। इसका मतलब होगा कि आप घर बैठे ही सत्र देख सकते हैं, सवाल पूछ सकते हैं और सीधे सांसदों से जवाब पा सकते हैं। इससे लोकतंत्र को नया रूप मिलेगा और जनता की भागीदारी बढ़ेगी।
अंत में यह कहना चाहिए कि ऑस्ट्रेलिया संसद का काम केवल स्थानीय लोगों तक सीमित नहीं है। उसकी निर्णय प्रक्रिया वैश्विक स्तर पर असर डालती है, खासकर जब बात व्यापार, पर्यावरण या सुरक्षा जैसी बड़े मुद्दों की हो। इसलिए नियमित रूप से समाचार पढ़ना और संसद के प्रमुख बिंदुओं को समझना हर उस व्यक्ति के लिये फायदेमंद है जो भारत‑ऑस्ट्रेलिया संबंध में रुचि रखता है।
ऑस्ट्रेलिया की संसद में किंग चार्ल्स III के आधिकारिक दौरे पर लीडिया थोर्प के विरोध ने आदिवासी समुदायों के मुद्दों को बढ़ा दिया। थोर्प ने 'आप हमारे राजा नहीं हैं, हमारी भूमि हमें वापस दो' के नारे लगाए। यह घटना ब्रिटिश उपनिवेशकीकरण से उत्पन्न ऐतिहासिक अन्याय और भूमि संबंधी दावों के प्रति ऑस्ट्रेलिया के आदिवासी समुदायों की चिंताओं को बयां करती है।
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