ऑस्ट्रेलिया की संसद में चार्ल्स III के खिलाफ विरोध का स्वर

ऑस्ट्रेलिया की संसद में चार्ल्स III के खिलाफ विरोध का स्वर

ऑस्ट्रेलिया की संसद में ब्रिटेन के किंग चार्ल्स III के खिलाफ विरोध

साल 2024 का अक्टूबर महीना था और ब्रिटेन के किंग चार्ल्स III और क्वीन कैमिला ऑस्ट्रेलिया के कैनबेरा में एक संसदीय रिसेप्शन में शामिल होने पहुंचे थे। इस कार्यक्रम का उद्देश्य ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच के ऐतिहासिक संबंधों को और मजबूत बनाना था, लेकिन ऐसा नहीं हो सका। जब किंग चार्ल्स III और क्वीन कैमिला ऑस्ट्रेलिया की संसद में पहुंचे, तब एक अप्रत्याशित घटना ने सबका ध्यान अपनी ओर खींचा।

ऑस्ट्रेलियाई संसद में लीडिया थोर्प, एक जानी-मानी आदिवासी सीनेटर और अधिकार कार्यकर्ता, ने अचानक से चार्ल्स III की ओर मुखातिब होकर चिल्लाई, 'आप हमारे राजा नहीं हैं। हमारी भूमि हमें वापस दो। हमें वो सब वापस दो जो आपने हमसे लिया।' इस बयान ने संसद में एक नए विवाद को जन्म दिया और ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के बीच के भावनात्मक और राजनीतिक संबंधों को फिर से विचार में ला दिया।

लीडिया थोर्प की भूमिका

लीडिया थोर्प ऑस्ट्रेलिया की एक प्रमुख आदिवासी नेता हैं, जो अपनी जमीन और अधिकारों के लिए लड़ती आ रही हैं। वह लगातार ऑस्ट्रेलियाई सरकार से आदिवासी समुदायों के साथ एक संधि पर बातचीत की मांग कर रही हैं। उन्होंने इस बात को जोर देकर कहा है कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद के कारण हुई ऐतिहासिक गलतियों को सुधारा जाए और इससे प्रभावित हुए आदिवासी समुदायों को न्याय दिलाया जाए। उनका विरोध केवल व्यक्तिगत नहीं है, बल्कि वह ऐतिहासिक रूप से उपेक्षित आदिवासी समुदायों की आवाज को पुरजोर तरीके से उठाती रहती हैं।

जब हम इतिहास में झांकते हैं, तो हमें समझ में आता है कि ब्रिटिश उपनिवेशवाद के समय से ही आदिवासी समुदायों को उनकी भूमि से वंचित किया गया था। इस उपनिवेशवाद ने न केवल उन्हें भूमि से बेदखल किया, बल्कि उनके जीवन का एक बड़ा हिस्सा भी छीन लिया। आज उनके विरोध को इतिहास की पुनरावृत्ति समझा जा सकता है जो अभी भी उन पर किए गए अत्याचारों की याद दिलाता है।

ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के संबंधों पर प्रभाव

इस घटना ने दोनों देशों के बीच राजनीतिक और सामाजिक रिश्तों पर भी सवाल खड़े किए हैं। ब्रिटेन का शाही परिवार और ऑस्ट्रेलिया के बीच एक लंबा इतिहास रहा है। हालांकि, चार्ल्स III का यह दौरा केवल सांस्कृतिक संबधों को पुनः स्थापित करने के उद्देश्य से था, लेकिन इस नई चुनौती ने उनके संबंधों पर एक गंभीर प्रभाव डाला है। लीडिया थोर्प के इस कार्य से यह स्पष्ट होता है कि आदिवासी समुदाय के लिए भूमि और अधिकारों की लड़ाई अब भी जारी है और इसे पूरी तरह से सुलझाने की जरूरत है।

ऑस्ट्रेलिया में, कई लोग अपनी आजादी और पहचान को लेकर चिंतित हैं। इस संधर्व में, लीडिया थोर्प का यह विरोध ज्यादा महत्व रखता है। यह केवल एक व्यक्ति की आवाज नहीं है, बल्कि एक समुदाय के दर्द और संघर्ष की आवाज है। शायद अब समय आ गया है कि ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन इस विषय पर मिलकर गंभीर कदम उठाएं और इस संघर्ष को सुलझाने का प्रयास करें।

सामाजिक और राजनीतिक प्रतिक्रियाएं

इस घटना के तुरंत बाद, सोशल मीडिया पर प्रतिक्रियाओं की बाढ़ आ गई। कुछ लोग लीडिया थोर्प का समर्थन कर रहे थे, जबकि कुछ आलोचना कर रहे थे। विरोधियों का मानना था कि संसदीय कार्यक्रम में इस तरह के व्यवहार की कोई जगह नहीं होनी चाहिए। जबकि समर्थकों का कहना था कि यह विरोध आदिवासी लोगों की दुखद स्थिति को दुनिया के सामने लाने का सही तरीका था।

राजनीतिक समुदाय में भी इस घटना की खासी चर्चा रही। कुछ नेताओं ने थोर्प के साहसी कदम को सलाम किया और आदिवासी अधिकारों के समर्थन में अपनी प्रतिबद्धता दोहराई। वहीं, कुछ लोग इस तरह की स्थिति को सुधारने के लिए बातचीत के महत्व पर जोर दे रहे थे। इस विरोध ने ऑस्ट्रेलिया में आदिवासी समुदाय के संघर्ष को एक बार फिर से मुख्यधारा में ला दिया और सरकार को अपनी नीतियों की समीक्षा करने के लिए मजबूर किया।

भविष्य की राह

भविष्य की राह

इस घटनाक्रम के बाद, यह जरूरी हो गया है कि सरकार और लोक सेवक आगे बढ़कर इस मुद्दे को हल करने की कोशिश करें। भूमि और संस्कृति का महत्व केवल आर्थिक दृष्टि से नहीं, बल्कि भावनात्मक और सांस्कृतिक दृष्टि से भी होता है।

ऑस्ट्रेलिया और ब्रिटेन के लिए अगली चुनौतियां भी स्पष्ट हैं। दोनों देशों को अपनी साझा विरासत के बावजूद यह समझना होगा कि आदिवासी समुदाय के अधिकारों और मांगों को पूरी गंभीरता से लेने की जरूरत है। अगर इस मुद्दे पर सार्थक पहल की जाए तो यह न केवल ऑस्ट्रेलिया के अद्यतन सामाजिक बंधनों को मजबूत करेगा, बल्कि यह ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया के रिश्तों को भी अधिक परिपक्वता प्रदान करेगा।

टिप्पणि

  • Abhishek Abhishek
    Abhishek Abhishek

    ये सब नाटक है। असली समस्या तो हमारे अंदर है।

  • Mallikarjun Choukimath
    Mallikarjun Choukimath

    लीडिया थॉर्प के इस अभियान को एक आधुनिक दर्शन के रूप में देखा जा सकता है, जहाँ औपनिवेशिक अत्याचार की यादें एक नए राष्ट्रीय चेतना के रूप में जागृत हो रही हैं। यह केवल भूमि का मामला नहीं, बल्कि अस्तित्व की न्यायाधीश की अपील है।

  • Avinash Shukla
    Avinash Shukla

    मुझे लगता है कि ये सब बहुत ज्यादा भावनात्मक हो गया... 😔 शायद दोनों तरफ से बातचीत की जरूरत है। कोई भी इतिहास नहीं बदल सकता, लेकिन भविष्य बनाया जा सकता है। 🤝

  • Harsh Bhatt
    Harsh Bhatt

    अरे भाई, ये लोग तो इतिहास को अपने लाभ के लिए फैला रहे हैं। जब तक आप अपनी आत्मा को नहीं बदलते, तब तक कोई भूमि वापस नहीं आएगी। आपको अपने आप को बदलना होगा, न कि ब्रिटेन को।

  • dinesh singare
    dinesh singare

    ये लीडिया थॉर्प वाकई में एक नायक है! इस देश में कोई भी ऐसा नहीं कर पाया जिसने इतनी बहादुरी से राजा के सामने बोल दिया। इसके बाद कोई भी ब्रिटिश शाही परिवार के नाम से ऑस्ट्रेलिया में आएगा तो उसका रास्ता रोक दिया जाएगा।

  • Priyanjit Ghosh
    Priyanjit Ghosh

    हा हा हा... ये लोग तो शाही वालों को डरा देना चाहते हैं 😂 लेकिन असली बात ये है कि ऑस्ट्रेलिया की सरकार अभी भी आदिवासियों के लिए कुछ नहीं कर रही। शायद अब तो ब्रिटेन को भी याद दिलाने की जरूरत है कि वो क्या कर रहे थे।

  • Anuj Tripathi
    Anuj Tripathi

    दोस्तों बस एक बात कहना चाहता हूँ... जब तक हम एक दूसरे को नहीं सुनेंगे तब तक ये लड़ाई चलती रहेगी। शायद अब तो हमें बातचीत का रास्ता चुनना चाहिए। 🌱

  • Hiru Samanto
    Hiru Samanto

    मैं इस बात से सहमत हूँ कि इतिहास को भूलना नहीं चाहिए... लेकिन अगर हम उसे दोहराएंगे तो क्या होगा? मुझे लगता है कि समाधान तो शायद बातचीत में है।

  • Divya Anish
    Divya Anish

    इस घटना को एक ऐतिहासिक आवाज के रूप में देखना चाहिए, जो उपनिवेशवाद के दुष्परिणामों के विरुद्ध एक न्यायपूर्ण आवेदन है। आदिवासी समुदायों के लिए भूमि केवल एक भौतिक संपत्ति नहीं, बल्कि एक आत्मिक जड़ है। इसकी अनदेखी करना नैतिक रूप से अस्वीकार्य है।

  • md najmuddin
    md najmuddin

    सुनो... ये बात तो बहुत पुरानी है। लेकिन अगर अब भी इसे उठाया जा रहा है, तो शायद इसका कोई मतलब है। शायद अब तो हमें इसका जवाब देना चाहिए।

  • Ravi Gurung
    Ravi Gurung

    मुझे नहीं पता कि ये सब क्या है... लेकिन लीडिया थॉर्प ने जो कहा वो सच है। हम लोग इसे भूल गए हैं।

  • SANJAY SARKAR
    SANJAY SARKAR

    क्या ऑस्ट्रेलिया में आदिवासी लोगों को अभी भी अपनी जमीन नहीं मिली? ये तो बहुत बुरा है।

  • Ankit gurawaria
    Ankit gurawaria

    इस घटना के पीछे एक विशाल ऐतिहासिक और सांस्कृतिक ताना-बाना छिपा है, जिसमें उपनिवेशवाद के दौरान आदिवासी समुदायों के लिए भूमि का अर्थ केवल एक भौतिक वस्तु नहीं, बल्कि एक आत्मिक जड़, एक आध्यात्मिक विरासत, एक जीवन-जीने का तरीका था। जब इन लोगों को उनकी भूमि से विस्थापित किया गया, तो उनकी परंपराएँ, भाषाएँ, धार्मिक अनुष्ठान, और सामाजिक संरचनाएँ भी नष्ट हो गईं। यह विरासत का नुकसान नहीं, बल्कि एक जीवन का अंत है। आज के आधुनिक ऑस्ट्रेलियाई राष्ट्र की पहचान का निर्माण इसी अधूरे इतिहास पर हुआ है, जिसकी आधारशिला अन्याय पर टिकी है। इसलिए जब लीडिया थॉर्प ने चार्ल्स को याद दिलाया कि वह उनका राजा नहीं है, तो वह एक ऐतिहासिक दावे की बात कर रही थी - एक ऐसे दावे की जिसे दुनिया ने लंबे समय तक अनदेखा किया।

  • AnKur SinGh
    AnKur SinGh

    इस घटना को एक ऐतिहासिक अवसर के रूप में देखा जाना चाहिए, जिससे ऑस्ट्रेलिया की सरकार को आदिवासी समुदायों के साथ एक वास्तविक संधि पर हस्ताक्षर करने के लिए प्रेरित किया जा सकता है। भूमि का मुद्दा केवल भौतिक नहीं, बल्कि आध्यात्मिक, सांस्कृतिक और नैतिक रूप से अत्यंत महत्वपूर्ण है। यदि ब्रिटेन और ऑस्ट्रेलिया वास्तविक रूप से साझा विरासत को सम्मानित करना चाहते हैं, तो उन्हें इस समय का उपयोग न्याय की ओर एक कदम बढ़ाने के लिए करना चाहिए।

  • Sanjay Gupta
    Sanjay Gupta

    अरे ये सब नाटक है! ऑस्ट्रेलिया अपनी आजादी के बाद भी ब्रिटेन के साथ रिश्ते बनाए रख रहा है, फिर अब ये आदिवासी लोग क्यों बहुत ज्यादा चिल्ला रहे हैं? ये सब बस एक राजनीतिक गेम है।

  • Kunal Mishra
    Kunal Mishra

    यह घटना एक भयानक दृश्य है - एक शाही व्यक्ति के सामने एक व्यक्ति का अपमान, जो वास्तव में एक निर्दयी राष्ट्रीय नाटक का प्रतीक है। इस तरह के व्यवहार को राजनीतिक दृष्टि से नहीं, बल्कि एक अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए। यह न केवल आदिवासी समुदाय के लिए, बल्कि शाही प्रतिष्ठा के लिए भी अपमानजनक है।

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