जब आप कलश स्थापना मुहूर्त, वह समय‑निर्धारण जो शादी, गृह प्रवेश या किसी बड़े समारोह में कलश स्थापित करने के लिए शुभ माना जाता है के बारे में सोचते हैं, तो विवाह, दो परिवारों का बंधन जहाँ रिवाज़ों का बड़ा महत्व होता है और हवन, आग में प्रार्थना करके ब्रह्मा शक्ति को जागृत करने का धार्मिक कर्म अक्सर साथ जुड़े होते हैं। इसी तरह वास्तु शास्त्र, भवन और स्थल की दिशा‑निर्देशिका जो ऊर्जा के प्रवाह को संतुलित करती है भी कलश की दिशा‑निर्धारण में मदद करती है। इस कलश स्थापना मुहूर्त को समझना आवश्यक है क्योंकि यही तय करता है कि समारोह में सकारात्मक ऊर्जा कैसे चारों तरफ फैलती है।
कलश खुद एक पवित्र पात्र है, जिसमें पवित्र जल, गोमती, नारियल, नारियल का पानी और पवित्र धान शामिल होते हैं। इस पवित्र वस्तु को सही समय पर स्थापित करने से घर या शादी की संपन्नता में वृद्धि होती है। अक्सर सलाह दी जाती है कि कलश को उत्तर‑ईशान या उत्तर‑पूर्व दिशा में रखा जाए, क्योंकि इन दिशाओं में ब्रह्मा की शक्ति अधिक रहती है। यह दिशा‑निर्धारण वैदिक ग्रन्थों में उल्लिखित है और कई पंडित इसे अनिवार्य मानते हैं।
समय का चयन केवल कागज पर नहीं बल्कि ज्योतिष शास्त्र के गणितीय सूत्रों पर आधारित होता है। जन्मकुंडली, ग्रहों की स्थिति और तिथि‑लोक की जलवायु को मिलाकर एक विशेषज्ञ शुभ मुहूर्त निकालता है। इस प्रक्रिया को “मुहूर्त सिद्धांत” कहा जाता है, जहाँ सूर्य, चंद्र, मंगल और गुरु के योग को विश्लेषित कर अंतिम समय तय किया जाता है। अगर यह समय गलत चुना जाए तो अनुकूल परिणाम मिलने की संभावना कम हो जाती है, इसलिए विशेषज्ञ की सलाह लेना बेहतर रहता है।
देश के विभिन्न क्षेत्रों में कलश स्थापना के रीति‑रिवाज़ में थोड़े‑बहुत बदलाव देखे जाते हैं। उत्तर भारत में अक्सर कलश को “कुंड” के आकार में बनाया जाता है, जबकि दक्षिण में इसे “संकट” के रूप में सजाते हैं। कुछ स्थानों में कलश के अंदर लहंगा या चुनरी भी रखी जाती है ताकि दूल्हा‑दूल्हन के जीवन में रंग और समृद्धि बनी रहे। ये विविधताएँ सांस्कृतिक समृद्धि को दर्शाती हैं और दर्शकों को स्थानीय परम्परा से जुड़ने का मौका देती हैं।
1. स्थापना स्थल का चयन – वास्तु शास्त्र के अनुसार उपयुक्त दिशा तय करना।
2. पवित्र सामग्री की तैयारी – जल, धान, नारियल, शुद्ध सागर जैसी वस्तुएँ।
3. हवन और मंत्रोच्चारण – पण्डित द्वारा शुद्धिकरण और आरती।
4. कलश का पूजन – बिंदु सिम्बल के रूप में जीवन में आशिर्वाद।
5. समारोह का अंत – कलश से निकाले गए जल को अभिषेक के रूप में वितरित करना।
नीचे आप देखेंगे कई ताज़ा खबरें जहाँ कलश स्थापना मुहूर्त को प्रमुखता से बताया गया है। कुछ लेख शादी समारोह में इस रिवाज़ की महत्त्वता पर प्रकाश डालते हैं, तो कुछ में गृह प्रवेश के दौरान उपयोगी टिप्स मिलते हैं। चाहे आप अपने बड़े दिन की तैयारी कर रहे हों या सिर्फ रिवाज़ों के बारे में जिज्ञासु हों, इस संग्रह में आपको विभिन्न पहलुओं की विस्तृत जानकारी मिल जाएगी। अब आगे बढ़ें और देखें कि आपके आसपास के क्षेत्रों में इस पवित्र अनुष्ठान को कैसे मनाया जा रहा है।
चैत्र नवरात्रि 2025 का सूर्योदय 30 मार्च को होगा, जिसके साथ कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त भी तय है। यह नौ दिन का धार्मिक महोत्सव माँ दुर्गा के नौ रूपों की पूजा, उपवास और विशेष अनुष्ठानों से भरपूर है। सातवें दिन कालयात्रि एवं आठवें दिन दुर्गा अष्ठमी के विशेष अनुष्ठान होते हैं। नौवें दिन राम नवमी के साथ उत्सव का समापन होता है, जो न केवल देवी शक्ति बल्कि भगवान राम के जन्म को भी मनाता है। पूरे भारत में इस अवसर को नई साल की शुरुआत के रूप में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है।
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