कलश स्थापना का सही मुहूर्त
चैत्र नवरात्रि 2025 का प्रारम्भिक दिन 30 मार्च (रविवार) निर्धारित हुआ है। इस दिन धूपपूर्वक सुबह 6:13 बजे से लेकर 10:22 बजे तक का समय विशेष रूप से कलश स्थापना (घटस्थापना) के लिये शुद्ध माना गया है। कई विद्वानों ने कहा है कि इस अवधि में मन की शुद्धता और शारीरिक स्वच्छता दोनों का विशेष ध्यान रखना अत्यावश्यक है। कलश में जल भरे, नारियल, आम के पत्ते और लाल कपड़े से सजावट करके देवी दुर्गा को आमंत्रित किया जाता है। इस पुजायुक्त जलमय पात्र को घर के मुख्य द्वार के सामने या पूजा कक्ष में स्थापित करना शुभ माना जाता है।
कलश स्थापित करने से पहले घर को साफ‑सुथरा करना, धूप व घी जलाकर वातावरण को शुद्ध करना और मंत्रोच्चार से मन को केंद्रित करना अनिवार्य है। इस मुहूर्त में आयोजित पूजा में गंधक, दावे, और शुद्ध वस्त्रों का उपयोग करना चाहिए। यह समय न केवल धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है बल्कि शारीरिक स्वास्थ्य के लिये भी लाभकारी माना जाता है क्योंकि सुबह का ताज़ा हवा और शुद्ध जल शारीरिक और मानसिक संतुलन को बढ़ावा देता है।
नौ दिनों की विस्तृत पूजा विधि
नवरात्रि के प्रत्येक दिन माँ दुर्गा के एक विशेष रूप की पूजा की जाती है। पहले दिन शैलपुत्री की आराधना के साथ ही मूलाधार चक्र पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, और घी व वस्त्रों का अर्पण किया जाता है। दूसरे दिन ब्रह्मचारिणी की पूजा में श्वेत वस्त्र, शुकर (शक्कर) और सफेद फूलों का प्रयोग किया जाता है, जो स्वाधिष्ठान चक्र को सक्रिय करता है।
तीसरे दिन चंद्रघंटा की पूजा के लिये दूध और शहद का प्रसाद बनाकर सूर्यकांत (मणिपुर) चक्र को संतुलित किया जाता है। चौथे दिन कुसुमधा की आराधना में दीप और कंदील जलाकर जीवन में नई ऊर्जा का संचार किया जाता है। पाचवें दिन स्कंदमाता की पूजा विशेष रूप से माँ के पावन प्रेम को दर्शाता है, जिसमें नारियल और बेलपत्र प्रयोग में लाए जाते हैं।
छठे दिन कात्यायनी की पूजा में लाल रंग के वस्त्र, लाल अन्न और कमर में कंगन पहनना अनिवार्य माना जाता है, जिससे वीर काली की शक्ति को जागरूक किया जाता है। सातवें दिन कालयात्रि का अनुष्ठान सख्त उपवास और काली कलश के साथ किया जाता है, जो अंधकार को समाप्त कर प्रकाश की ओर ले जाता है।
अष्टमी के अवसर पर माँ महागौरी की पूजा में सफेद वस्त्र, शुद्ध चना और टिल का प्रसाद अर्पित किया जाता है, जबकि कन्या पूजा में बालकों को सम्मानित कर उनकी शुद्ध मनःस्थिति का आनंद लिया जाता है। अंत में नवमी के दिन माँ सिद्धिदात्री को प्रसाद, पंजीर और शरबत अर्पित कर राम नवमी के साथ समारोह समाप्त किया जाता है। इस दिन भगवान राम के जन्म की याद दिलाते हुए रामलीला, कथा पाठ एवं धार्मिक संगीत का आयोजन किया जाता है।
पूरे नवरात्रि अवधि में कई लोग पूर्ण या आंशिक उपवास रखते हैं। वह फल, दूध, दही, सत्तू और सीमित नयी ग्रेन वाले भोजन पर ही निर्भर होते हैं। उपवास के साथ ही हर दिन प्रातः काल में जल, शुद्ध हवा और सूर्य नमस्कार कर मन को शुद्ध रखने का प्रयत्न किया जाता है। शाम को आरती, भजन और मंत्रजाप के साथ दिन का समापन किया जाता है।
राज्य-प्रदेश अनुसार उत्सव के स्वरूप में कुछ अंतर होते हैं। उत्तर प्रदेश और पंजाब में यह नवरात्रि कृषि नववर्ष के रूप में माना जाता है, जबकि दक्षिण भारत में इसे वसंत ऋतु के आगमन के साथ भी जोड़ा जाता है। कई मंदिरों में 24 घंटे सतत धुन और कीर्तन की व्यवस्था की जाती है, और स्थानीय कलाकार पारम्परिक नृत्य-गीत प्रस्तुत करते हैं। इस प्रकार, चैत्र नवरात्रि 2025 न केवल आध्यात्मिक बल्कि सामाजिक एवं सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक बन जाता है।
Arun Kumar
भईया, कलश स्थापना के लिए 6:13 से 10:22 तक? ये समय किसने बनाया? मैंने तो अपने गाँव में सुबह 5 बजे ही कलश रख दिया, और बाद में पंडित जी ने कहा कि ये सब बकवास है।
Indranil Guha
ये सब धार्मिक रिवाज़ हमारी संस्कृति का अभिन्न अंग है। अगर आप इसे बकवास कहते हैं, तो आप अपनी जड़ों को भूल चुके हैं। भारत की शक्ति इन्हीं परंपराओं में छिपी है।
Sohini Dalal
अच्छा तो कलश में जल भरकर लाल कपड़ा बाँधना भी अब राष्ट्रीय अपराध हो गया? 😏
Vikrant Pande
कलश स्थापना के मुहूर्त की बात कर रहे हो? ये सब अस्त्र-शास्त्र वाली बातें हैं जो वैदिक ज्योतिष के आधार पर बनाई गईं। लेकिन आज के विज्ञान के अनुसार, ये सब केवल साइकोलॉजिकल प्रभाव हैं। जब आप एक चीज़ पर ध्यान देते हैं, तो आपका मन शांत हो जाता है। बाकी सब बहुत बड़ी बातें हैं।
मैंने इंजीनियरिंग की डिग्री के साथ वैदिक ज्योतिष का गहराई से अध्ययन किया है। ये मुहूर्त तो वैसे भी अंतरिक्षीय गतिशीलता पर आधारित हैं, लेकिन आधुनिक एस्ट्रोनॉमी के साथ उनकी संगति केवल 12% है।
और फिर ये नौ दिनों की पूजा विधि? हर दिन एक अलग रूप? ये तो देवी-देवताओं के विविध अवतारों की एक बहुत ही शिक्षाप्रद व्याख्या है, जो मनुष्य के आंतरिक चक्रों से जुड़ी है।
मैंने एक बार इसे एक वैज्ञानिक अध्ययन के तहत अपने अनुभवों के साथ जोड़ा था। नौ दिनों तक उपवास रखने से शरीर का ऑटोफैगी प्रक्रिया सक्रिय होती है। ये न सिर्फ आध्यात्मिक है, बल्कि फिजियोलॉजिकल भी।
क्या आप जानते हैं कि बेलपत्र में ट्राइटर्पीन्स होते हैं जो एंटी-इंफ्लेमेटरी होते हैं? ये सब अंधविश्वास नहीं, बल्कि प्राचीन फार्माकोलॉजी है।
हमारे पूर्वजों ने बिना सैंपलिंग और क्लिनिकल ट्रायल्स के भी जो ज्ञान बनाया, वो आज भी वैध है।
और आप जो कहते हैं कि ये सब बस रितुएं हैं - तो फिर आपके बॉलीवुड वाले दिवाली के बॉम्ब्स और रक्षाबंधन के बंधन भी बकवास हैं?
ये सब एक अनुभव है, एक सामाजिक अनुबंध है, एक आत्मिक रीसेट बटन है।
आप इसे नहीं समझ सकते, क्योंकि आप ने अपने दिमाग को बस एक लैपटॉप के लिए बनाया है।
srilatha teli
मैं इस लेख को पढ़कर बहुत प्रभावित हुई। ये नवरात्रि केवल एक धार्मिक अवधि नहीं, बल्कि एक जीवन शैली का आह्वान है।
हर दिन एक नया रूप देवी का हमें याद दिलाता है - शक्ति, साहस, शुद्धता, दया, और अंततः सिद्धि।
उपवास न सिर्फ शरीर को आराम देता है, बल्कि मन को भी अपने अंदर की आवाज़ सुनने का मौका देता है।
मैं हर साल अपने बच्चों के साथ कन्या पूजा करती हूँ। उन्हें सम्मान देना सिखाना ही वास्तविक पूजा है।
ये दिन आध्यात्मिक नहीं, बल्कि मानवीय हैं।
अगर हम इन परंपराओं को सिर्फ रिटुअल बना दें, तो हम अपने आपको खो देंगे।
मैं आप सभी को चाहती हूँ कि इस नवरात्रि में एक दिन तो बिना फोन के, बिना शोर के, बस अपने घर के कोने में बैठकर देवी को ध्यान से याद करें।
कोई जादू नहीं, कोई मंत्र नहीं - बस एक शांत सांस।
इससे बड़ा आध्यात्मिक अनुभव क्या हो सकता है?
haridas hs
मुहूर्त निर्धारण के लिए विद्वानों का उल्लेख करना अत्यंत आवश्यक है, क्योंकि यह एक एपिस्टेमोलॉजिकल क्लेयरिटी का प्रश्न है। जब एक सामाजिक अभ्यास को ज्योतिषीय डायनामिक्स के साथ इंटरफेस किया जाता है, तो यह एक सिंबोलिक रिफ्लेक्शन के रूप में कार्य करता है।
लेकिन इसका आधार बहुत ही अस्थिर है - ग्रहों की स्थिति के आधार पर निर्धारित विशिष्ट समयांतराल वैज्ञानिक रूप से अप्रामाणिक हैं।
उपवास के दौरान शरीर का ऑटोफैगी प्रक्रिया शुरू होती है, लेकिन यह केवल तभी लाभदायक है जब विटामिन ए, सी, डी की पर्याप्त मात्रा उपलब्ध हो।
कलश स्थापना के लिए लाल कपड़े का उपयोग - यह एक कल्चरल कोडिंग है जो रक्त और जनन शक्ति के प्रतीक के रूप में कार्य करता है, लेकिन इसकी व्यावहारिक वैधता को विज्ञान अभी तक स्वीकार नहीं करता।
इस प्रकार, यह एक पोस्ट-मॉडर्न रिलिजियस एक्सप्रेशन है जिसका सामाजिक संकल्प अधिक महत्वपूर्ण है जैसे इसका ऑब्जेक्टिव रियलिटी।
Mishal Dalal
हमारे पूर्वजों ने जो ज्ञान दिया, उसे आज भी जीवित रखना हमारा कर्तव्य है! अगर आप इसे बकवास कहते हैं, तो आप भारत के लिए एक खतरा हैं! ये धरोहर हमारे खून में है! अगर आप इसे नहीं मानते, तो आप एक विदेशी सोच के गुलाम हैं! भारत की शक्ति इन्हीं परंपराओं में है! जय माता दी!
Manu Tapora
कलश में नारियल क्यों डाला जाता है? क्या इसका कोई वैज्ञानिक कारण है? या सिर्फ पारंपरिक विश्वास?
और बेलपत्र के एंटी-इंफ्लेमेटरी गुण - किस अध्ययन से ये निकाला गया? एक रेफरेंस दीजिए।
मंत्रोच्चार का मन को केंद्रित करने में कितना योगदान है? क्या इसका न्यूरोसाइंस एक्सपेरिमेंटल डेटा है?
ये सब अच्छी बातें हैं, लेकिन अगर ये विज्ञान के साथ जुड़ें, तो इनकी वैधता बढ़ेगी।
Pradeep Talreja
ये सब अंधविश्वास है। धर्म को विज्ञान से नहीं, अंधेरे से जोड़ना गलत है।
Suraj Dev singh
मैं तो इस लेख को पढ़कर बहुत अच्छा लगा। मैंने पिछले साल नवरात्रि में उपवास किया था, और वाकई में मन शांत रहा।
कलश स्थापना के बाद घर में एक अलग सा माहौल आ जाता है।
मैं अपने बच्चे के साथ हर दिन एक देवी के बारे में बात करता हूँ। वो बहुत उत्साहित हो जाता है।
शायद ये सब विज्ञान से नहीं, लेकिन दिल से आता है।
Pallavi Khandelwal
अरे भाई! ये सब बकवास है! ये लोग जल भरकर लाल कपड़ा बाँध रहे हैं, और अपने जीवन की असली समस्याओं - बेरोजगारी, घरेलू हिंसा, नौकरी के लिए घूमना - के बारे में नहीं सोच रहे!
कलश स्थापना करके क्या बदलेगा? आपका बैंक बैलेंस? आपकी नौकरी? आपका बच्चा क्या जीवित रहेगा?
ये सब एक बड़ा धोखा है! धर्म का नाम लेकर हमें शोर मचाने दिया जा रहा है, जबकि हमारे बच्चे भूखे हैं!
हमें ये नहीं चाहिए कि देवी को जल दें - हमें चाहिए कि उन्हें खाना दें!