इंजन उत्पादन की दुनिया – क्या नया चल रहा है?

अगर आप कार या दोपहिया खरीदने वाले हैं तो इंजन के बारे में थोड़ा‑बहुत जानना फ़ायदे का होता है। इंजन ही वो दिल है जो गाड़ी को चलाता है, इसलिए इस पर ध्यान देना जरूरी है। यहाँ हम सरल शब्दों में बताते हैं कि आजकल भारत और दुनिया भर में इंजन निर्माण कैसे बदल रहा है, कौन सी नई तकनीकें आ रही हैं और आपको क्या देखना चाहिए जब आप नया मोटर चुनते हैं।

भारत में इंजन निर्माण की स्थिति

पिछले कुछ सालों में भारत ने मोटर उद्योग में तेज़ी से बढ़त बनाई है। मारुति, टाटा, महिंद्रा जैसे बड़े ब्रांड अब अपने स्थानीय कारखानों में हल्के‑से‑हल्के पेट्रोल इंजन और हाई‑टॉर्क डीजल दोनों बनाते हैं। सरकार की ‘Make in India’ पहल ने कई नई फ़ैक्ट्री खोलीं और विदेशी कंपनियों को भी यहाँ उत्पादन करने का प्रोत्साहन दिया। परिणामस्वरूप, अब बहुत सारी गाड़ियाँ वहीँ असेंबल होती हैं जहाँ उनका इंजन बनाया जाता है, जिससे लागत कम होती है और डिलिवरी तेज़।

छोटे‑मोटे उधमी भी इलेक्ट्रिक मोटर्स बनाते हैं। बैटरी‑सहायता वाले वाहनों की बढ़ती मांग ने सिंगल‑सिलेंडर एंजिन से लेकर 4‑सिलेंडर हाई‑परफॉर्मेंस मॉडल तक के मिश्रण को प्रेरित किया है। अगर आप बजट में अच्छी माइलेज वाली कार ढूँढ रहे हैं, तो भारतीय निर्माताओं के नए इंजन पर नज़र रखें; कई बार वहीँ की तकनीक विदेशी मॉडलों से बेहतर होती है क्योंकि वो स्थानीय जलवायु और ईंधन गुणवत्ता को ध्यान में रखकर डिज़ाइन किए जाते हैं।

भविष्य के तकनीकी रुझान

इंजन निर्माण में सबसे बड़ा बदलाव इलेक्ट्रिक और हाइब्रिड सिस्टम का आगमन है। आजकल कई कंपनियां पेट्रोल‑डिज़ल इंजन को धीरे‑धीरे हटाकर टर्बोचार्ज्ड छोटे सिलेंडर वाले एंजिन या पूरी तरह इलेक्ट्रिक पावरट्रेन अपनाने की योजना बना रही हैं। टर्बो तकनीक से कम ईंधन में अधिक शक्ति मिलती है, जिससे माइलेज सुधरता है और कार का वजन भी घट जाता है।

दूसरी ओर, हाइब्रिड सिस्टम दो इंजन – एक पेट्रोल/डीजल और दूसरा इलेक्ट्रिक मोटर – को साथ चलाता है। इससे शहरी ट्रैफ़िक में फ्यूल कंजम्पशन काफी कम हो जाता है। अगर आप शहर में रोज़ाना ड्राइव करते हैं तो ऐसे हाइब्रिड मॉडल आपके खर्चे को घटा सकते हैं।

भविष्य की बात करें तो, 2025 तक कई बड़े ब्रांड अपने कारों में ‘ऑन‑डिमांड’ फ्यूल सिस्टम पेश करेंगे जो डीजल और पेट्रोल दोनों मोड स्विच कर सकेगा। इसका मतलब है कि आप एक ही इंजन को दो तरह के ईंधन से चला पाएँगे – इससे इंधन की उपलब्धता की चिंता कम होगी। साथ ही, एंजिन में AI‑सहायता वाले सेंसर लगेंगे जो रियल‑टाइम डेटा पर बेस करके फ्यूल इंजेक्शन और टर्बोस्पीड को ऑटो‑एडजस्ट करेंगे, जिससे ड्राइविंग स्मूद और इकोनोमी बेहतर रहेगी।

तो जब अगली बार आप नई गाड़ी की खोज में हों तो केवल डिज़ाइन या ब्रांड नहीं, बल्कि इंजन तकनीक पर भी ध्यान दें। टर्बो, हाइब्रिड या इलेक्ट्रिक – जो भी विकल्प आपके उपयोग के हिसाब से सही लगे, वही चुनें। याद रखें, बेहतर इंजन मतलब कम खर्चा, कम प्रदूषण और लंबी उम्र वाली गाड़ी।

स्कोडा ऑटो वोक्सवैगन के चाकण प्लांट ने 5 लाख इंजन उत्पादन का मील का पत्थर छुआ

स्कोडा ऑटो वोक्सवैगन के चाकण प्लांट ने 5 लाख इंजन उत्पादन का मील का पत्थर छुआ

स्कोडा ऑटो वोक्सवैगन इंडिया ने अपने चाकण प्लांट में 5 लाख इंजन के उत्पादन का मील का पत्थर हासिल किया। यह प्लांट भारतीय और वैश्विक ऑटोमोबाइल उद्योग के लिए एक महत्वपूर्ण केंद्र है। यहां 1.0 लीटर और 1.5 लीटर टीएसआई इंजन बनाए जाते हैं, जो कई मॉडलों में उपयोग होते हैं। प्लांट ने ई20 कंप्लायंट इंजन का उत्पादन भी शुरू किया है।

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