एंटी रैबिज वैक्सीनेशन – क्यों जरूरी है?

रैबिज एक जानलेवा बीमारी है जो मुख्य तौर पर पालतू या जंगली जानवरों के काटने से फैलती है। अगर तुरंत इलाज नहीं किया गया तो मरण संभव है। इसलिए एंटी रैबिज वैक्सीनेशन को बचाव का पहला कदम माना जाता है।

रैबिज का खतरा और टीके का काम

रैबिज वायरस नसों के जरिए दिमाग तक पहुंचता है और फिर घातक दुष्प्रभाव देता है। एंटी रैबिज वैक्सीन इस वायरस को शरीर में पहचान कर एंटीबॉडी बनवाता है, जिससे रोगी का इम्यून सिस्टम तुरंत जवाब दे पाता है। वैक्सीन सिर्फ एक बार नहीं, बल्कि कई डोज़ में दिया जाता है, जिससे सुरक्षा मजबूत रहती है।

टीका कब और कैसे लगवाएँ

अगर आप कुत्ते, बिल्ली, चमगादड़ या किसी जंगली जानवर के संपर्क में आते हैं तो तुरंत डॉक्टर से मिलें। सामान्यतः पहला डोज़ काटने के 24 घंटे के भीतर देना सबसे सुरक्षित है। फिर 7 दिन, 21 दिन और 30 दिन पर बूस्टर शॉट लगवाया जाता है। बचपन से ही अक्सर स्कूलों में एंटी रैबिज वैक्सीनेशन करने की सलाह दी जाती है, खासकर ग्रामीण इलाकों में जहाँ जानवरों की संख्या ज्यादा होती है।

वैक्सीन लेने के बाद हल्का बुखार या इंजेक्शन साइट पर सूजन हो सकती है, लेकिन यह आम तौर पर कुछ दिनों में ठीक हो जाता है। अगर दर्द, उलझन या तेज़ बुखार जैसा कोई गंभीर लक्षण दिखे तो तुरंत डॉक्टर से संपर्क करें।

वैकल्पिक उपचार के बारे में मत सोचें—एंटी रैबिज वैक्सीनेशन सबसे भरोसेमंद तरीका है। कई बार लोग घबराकर घरेलू नुस्खे अपनाते हैं, लेकिन वायरस के खिलाफ शरीर की प्रतिरक्षा तभी बनती है जब वैक्सीन सही समय पर दिया जाए।

हमें यह भी याद रखना चाहिए कि रैबिज का मुख्य स्रोत कुत्ते होते हैं। इसलिए अपने पालतू कुत्ते को नियमित रूप से वैक्सीनेशन करवाना न सिर्फ उसके लिए, बल्कि पूरे परिवार की सुरक्षा के लिए जरूरी है। सरकारी स्वास्थ्य केंद्रों में अक्सर मुफ्त या कम कीमत पर वैक्सीन उपलब्ध कराते हैं, तो एक बार जाँच कर लें।

अगर आप यात्रा पर बाहर हैं और जंगल या ग्रामीण इलाकों में जाने का प्लान है, तो पहले से एंटी रैबिज वैक्सीनेशन करवाना समझदारी है। कुछ देशों में प्रवेश के लिए वैक्सीन कार्ड दिखाना भी अनिवार्य हो सकता है।

संक्षेप में, एंटी रैबिज वैक्सीनेशन एक छोटी सी इंजेक्शन है जो आपके और आपके परिवार को बड़े खतरे से बचा सकता है। समय पर डोज़, डॉक्टर की सलाह और उचित देखभाल से आप इस बीमारी से पूरी तरह सुरक्षित रहेंगे।

गाज़ीअब्द में बिल्ली के काटने का आँकड़ा चिम्पांजी के हमलों को पछाड़, एंटी‑रैबिज वैक्सीन की मांग बढ़ी

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गाज़ीअब्द में बिल्लियों के काटने की संख्या अब बंदरों के हमलों से अधिक हो गई है। सितंबर में अकेले 320 लोग बिल्लियों के काटे गए, जबकि पिछले छह महीनों में कुल 1,934 मामले सामने आए। इस वृद्धि ने एंटी‑रैबिज वैक्सीन की मांग में तीव्र बढ़ोतरी कर दी, जिससे स्वास्थ्य केंद्रों पर दबाव बढ़ा। विशेषज्ञों का मानना है कि बढ़ती पालतू और आवारा बिल्लियों की संख्या इस trend का मुख्य कारण है। प्रशासन इस नई सार्वजनिक स्वास्थ्य चुनौती का समाधान खोजने में लगा है।

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