गाज़ीअब्द में बिल्ली के काटने का आँकड़ा चिम्पांजी के हमलों को पछाड़, एंटी‑रैबिज वैक्सीन की मांग बढ़ी

गाज़ीअब्द में बिल्ली के काटने का आँकड़ा चिम्पांजी के हमलों को पछाड़, एंटी‑रैबिज वैक्सीन की मांग बढ़ी

बढ़ते बिल्ली के काटने के आँकड़े

गाज़ीअब्द में पिछले कुछ महीनों से बिल्लियों के काटने की संख्या में तेज़ी से वृद्धि देखी जा रही है। सिर्फ़ सितंबर महीने में 320 लोगों को बिल्लियों ने काटा, जबकि उसी अवधि में कुत्तों के काटने की संख्या 223 रही। यह आंकड़ा असामान्य है क्योंकि आमतौर पर बंदरों या कुत्तों के हमले अधिक होते आये हैं।

पिछले छह महीने के समग्र डेटा से स्पष्ट होता है कि बिल्लियों ने 1,934 लोगों को काटा, जबकि बंदरों ने 1,742 लोगों पर हमला किया। इस हिसाब से बिल्लियों की सक्रियता अब पहले के रिकॉर्ड को पीछे छोड़ चुकी है। स्वास्थ्य अधिकारियों ने बताया कि इस बदलाव के पीछे कई कारण हो सकते हैं, जैसे कि शहरों में पालतू बिल्लियों की संख्या में अचानक वृद्धि और आवारा बिल्लियों की अनियंत्रित बढ़ोतरी।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के मुताबिक, बिल्लियों के काटने में संक्रमण का खतरा दो गुना अधिक होता है। इसलिए तुरंत चिकित्सा मदद लेना ज़रूरी है, नहीं तो रैबिज या अन्य गंभीर संक्रमण हो सकता है।

स्वास्थ्य प्रणाली पर दबाव और उपाय

बिल्ली के काटने के मामलों में बढ़ोतरी के साथ एंटी‑रैबिज वैक्सीनेशन की मांग भी दोगुनी हो गई है। स्थानीय सरकारी अस्पतालों और निजी क्लीनिकों में वैक्सीन की कतारें बढ़ी हैं, जिससे स्टॉक प्रबंधन में कठिनाई आ रही है। चिकित्सा विभाग ने तुरन्त आवश्यक वैक्सीन की आपूर्ति बढ़ाने का आदेश दिया है और आपातकालीन काउंटर खोले हैं जहाँ लोग तुरंत उपचार करवा सकते हैं।

आगे की योजना में न केवल वैक्सीन की उपलब्धता सुनिश्चित करना शामिल है, बल्कि बिल्लियों की जनसंख्या नियंत्रण पर भी ध्यान देना आवश्यक है। कुछ नगर निगमों ने अब कबूतर और कबूतर के कूले जैसे ट्रीटमेंट वाले प्रोग्राम शुरू करने की घोषणा की है, जिससे आवारा बिल्लियों की संख्या को प्रबंधित किया जा सके।

  • सड़क किनारे की बिल्लियों को पकड़ कर अद्यतित टीकाकरण कार्यक्रम में शामिल करना।
  • पालतू बिल्लियों के मालिकों से नियमित जांच और टिका‑टिप्पणी की जानकारी देना।
  • सामुदायिक जागरूकता अभियान चलाकर लोगों को बिल्लियों के साथ टकराव से बचने के टिप्स देना।
  • स्थानीय नयी वर्डनिंग नीतियों के तहत बिल्लियों के लिए ठहराव स्थल बनाना।

अधिकांश डॉक्टर इस बात पर ज़ोर देते हैं कि किसी भी प्रकार के animal bite के तुरंत बाद रैबिज के जोखिम को घटाने के लिए प्रोफ़ाइलैक्टिक ट्रीटमेंट शुरू किया जाना चाहिए। विशेष रूप से बिल्ली के काटने में संक्रमण की संभावना अधिक होने के कारण, शुरुआती एंटी‑बायोटिक्स और एंटी‑रैबिज इम्युनोग्लोबुलिन देना अनिवार्य है।

स्थानीय प्रशासन ने इस मुद्दे पर एक विशेष कार्यकारी समूह गठित किया है, जो बिल्लियों के आवास, स्वास्थ्य मार्गदर्शन और आपातकालीन उपचार केंद्रों की निगरानी करेगा। इस समूह का लक्ष्य है कि अगले छह महीनों में बिल्लियों के काटने की संख्या को नियंत्रित किया जाए और वैक्सीन की उपलब्धता में कोई कमी न रहे।

टिप्पणि

  • Arun Kumar
    Arun Kumar

    बिल्लियाँ अब शहर की रानियाँ हो गई हैं, और हम लोग उनके लिए वैक्सीन की कतार में खड़े हो रहे हैं? अरे भाई, एक बिल्ली के काटने पर इतना शोर क्यों? मैंने तो बचपन में बिल्ली के नाखून से खुजली हुई थी, नहीं तो जीवन बर्बाद हो जाता।

  • Vikrant Pande
    Vikrant Pande

    ये सब बकवास है। बिल्लियाँ तो हमेशा से खतरनाक रही हैं, लेकिन अब वो फैशन का हिस्सा बन गईं - लोग उन्हें घर में रखते हैं, इंस्टाग्राम पर पोस्ट करते हैं, और फिर जब काट लें तो एंटी-रैबिज की दुकानों पर जमावड़ा। ये शहरी बुद्धिजीवी लोग अपने पालतू जानवरों को बचाने के लिए अस्पतालों को बर्बाद कर रहे हैं। आपकी बिल्ली का नाम क्या है? शायद वो भी एक डॉक्टर है।

  • srilatha teli
    srilatha teli

    इस बात पर बहुत गहराई से सोचने की जरूरत है। बिल्लियों की बढ़ती संख्या सिर्फ एक समस्या नहीं, बल्कि हमारी शहरी जीवनशैली का एक दर्पण है। हमने अपने आप को इतना अलग कर लिया है कि अब जानवर भी हमारे बीच अनियंत्रित हो गए हैं। वैक्सीन तो जरूरी है, लेकिन अगर हम बिल्लियों के साथ सह-अस्तित्व की नीति नहीं बनाएंगे, तो ये समस्या और बढ़ेगी। हमें उन्हें दुश्मन नहीं, बल्कि साझा जीवन का हिस्सा समझना होगा।

  • Sohini Dalal
    Sohini Dalal

    अरे यार, तुम लोग इतना डर क्यों रहे हो? मेरी बिल्ली तो रोज़ मेरे चेहरे पर झूपड़ी बनाती है, और मैंने कभी वैक्सीन नहीं लगवाई। बस थोड़ा साबुन और पानी, और फिर चलो चाय पीते हैं। दुनिया बदल रही है, लेकिन तुम अभी भी बिल्लियों को रैबिज का साधन समझ रहे हो? बस थोड़ा शांत हो जाओ।

  • Suraj Dev singh
    Suraj Dev singh

    मैं तो बहुत सराहना करता हूँ कि स्थानीय प्रशासन ने एंटी-रैबिज के लिए आपातकालीन काउंटर खोले हैं। ये बहुत जरूरी बात है। मेरी बहन के बच्चे को पिछले हफ्ते बिल्ली ने काटा था, और उन्होंने तुरंत वहाँ जाकर टीका लगवा लिया। अगर ये सिस्टम न होता, तो बहुत बड़ी समस्या हो जाती। अब बिल्लियों के लिए ठहराव स्थल भी अच्छा विचार है - बस इसे जल्दी से लागू कर दें।

  • haridas hs
    haridas hs

    इस घटना के पीछे एक सामाजिक-रोगविज्ञान (social-pathogenic) डायनामिक्स छिपा हुआ है। शहरी निवासियों का अकेलापन, जीवन के प्रति अप्रत्यक्ष आक्रमण, और पालतू प्राणियों के प्रति अतिसंवेदनशील आस्था - ये सब एक असंगठित नियंत्रण व्यवस्था का परिणाम है। बिल्लियों के काटने का आँकड़ा एक सिम्बल है, न कि एक समस्या। हम वैक्सीन के साथ लक्षणों को दूर कर रहे हैं, लेकिन रोग का मूल कारण अभी भी अपरिहार्य है।

  • Shiva Tyagi
    Shiva Tyagi

    हमारी संस्कृति में बिल्ली को देवी का अवतार माना जाता है - लेकिन अब वो देवी बनकर भी अपने नाखूनों से लोगों को नष्ट कर रही है? ये अपराध है। अगर आप बिल्ली को पालते हैं, तो उसकी जिम्मेदारी आपकी है। इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि अगर बिल्ली आपके घर से निकलकर बाहर भटक रही है, तो वो आपका अहंकार है, न कि एक प्राकृतिक घटना। इस तरह की लापरवाही को अपराध के रूप में देखा जाना चाहिए।

  • Manu Tapora
    Manu Tapora

    WHO का डेटा बिल्ली के काटने में संक्रमण का खतरा दोगुना बताता है - लेकिन क्या ये आँकड़ा बिल्ली के काटने के बाद जल्दी ट्रीटमेंट न मिलने के कारण है? क्या हम ये नहीं सोच रहे कि अगर लोग तुरंत अस्पताल नहीं जाते, तो संक्रमण का रिस्क बढ़ जाता है? शायद समस्या बिल्लियों में नहीं, बल्कि स्वास्थ्य जागरूकता में है।

  • Indranil Guha
    Indranil Guha

    हमारे देश में कुत्तों के काटने के आँकड़े कम हो गए हैं - और अब बिल्लियाँ तब्दील हो गईं? ये भारत की नई असफलता है। आपके घर में बिल्ली नहीं, बल्कि आपके दिमाग में बिल्ली है - जो अपने आप को शहरी फैशन बताती है। हमें अपनी संस्कृति को बचाना होगा, न कि इन नौकरशाह बिल्लियों को बचाना। बिल्ली को टीका नहीं, बल्कि गले में डोरी लगानी चाहिए। ये हमारी ज़िम्मेदारी है।

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