छठ पूजा: परम्परा, रीति‑रिवाज़ और आज की ख़बरें

जब हम छठ पूजा, भू‑मध्य भारत के बिहार, झारखण्ड और उत्तर प्रदेश के कुछ हिस्सों में मनाया जाने वाला सूर्य समर्पण उत्सव. इसे सूर्य पूजा भी कहा जाता है, तो इस परम्परा का मूल उद्देश्य सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित कर स्वास्थ्य, खुशहाली और कृषि उन्नति की प्रार्थना करना है। इस उत्सव में व्रत, स्नान और अर्घ्य तीन मुख्य स्तम्भ हैं, जो एक‑दूसरे को सुदृढ़ करते हैं। इस लेख में हम इन मूल तत्वों को समझेंगे और साथ ही इस साल छठ पूजा से जुड़ी प्रमुख ख़बरों की झलक देंगे।

छठ पूजा में सूर्य अर्घ्य, सूरज के उगते और डूबते समय जल एवं गंगा‑यमुना के किनारे किए जाने वाले अर्पण रिवाज़ की महत्ता विशेष है; इसे अर्घ्य कहा जाता है क्योंकि अर्घ्य में अर्घ्यदायक को सूर्य के प्रति सम्मानित करने का भाव दृश्य होता है। अर्घ्य का नियम है – दो बार, सुबह के उगते और शाम के अस्त होते सूर्य को। इसके साथ ही व्रत, छठ के अनुयायियों द्वारा सात दिन सात रात तक खाँटे, शुद्ध जल व सात फाल्हारी (सादा भोजन) का सेवन न करना माना जाता है कि यह शारीरिक व आध्यात्मिक शुद्धि लाता है। व्रत का पालन करने से शरीर में डिटॉक्सिफिकेशन होता है और मन की स्थिरता बढ़ती है। नदी स्नान, गंगा, कृष्णा, या स्थानीय नदियों के किनारे हल्का स्नान करना, जो शुद्धता और ऊर्जा को बढ़ाता है भी इस परम्परा में अनिवार्य है; स्नान के बाद ही अर्घ्य को उचित मान्यता मिलती है। इन तीनों तत्वों – अर्घ्य, व्रत और स्नान – आपस में जुड़कर एक समग्र अनुष्ठान बनाते हैं, जिससे भगवान सूर्य से आशीर्वाद की अपेक्षा की जाती है।

छठ पूजा से जुड़ी ताज़ा ख़बरें और सामाजिक प्रभाव

पिछले हफ़्ते बिहार के कई जिले में भारी वर्षा ने गंगे‑यमुना के किनारों पर स्थित छठठियालों को जलमग्न कर दिया, जिससे अर्घ्य आरती में बाधा आई। स्थानीय प्रशासन ने अनुकूल समय पर पूजन स्थल को साफ़ करके पुनः आरती का आयोजन किया, जिससे श्रद्धालुओं ने सुगमता से अर्घ्य अर्पित किया। वहीं उत्तर प्रदेश में कुछ शहरों ने छठ पूजा के अवसर पर पर्यावरणीय जागरूकता अभियान चलाया, जिसमें नदी के किनारे प्लास्टिक का उपयोग न करने की अपील की गई। इस पहल से कई स्वयंसेवी समूहों ने सख़्त साफ़‑सफाई की, जिससे जलगुणवत्ता में सुधार देखा गया।

सामाजिक स्तर पर छठ पूजा ने एकता का भी संदेश दिया। झारखण्ड में मुस्लिम समुदाय के सहकारी समूह ने गंगा किनारे शिविर लगाए, जहाँ सभी धर्मों के लोग मिलकर अर्घ्य सामग्री और भोजन बनाते रहे। इस पहल ने धार्मिक संगतियों को एक साथ लाने में मदद की और स्थानीय मीडिया ने इस पहल को एक सकारात्मक मिसाल के रूप में दर्शाया। इसके अलावा, इस साल छठ पूजा के दौरान कई स्कूलों ने बच्चों को सूर्य के महत्व और पर्यावरण संरक्षण के बारे में शिक्षण सत्र आयोजित किए, जिससे नई पीढ़ी में जागरूकता बढ़ी।

इन घटनाओं से स्पष्ट होता है कि छठ पूजा सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि सामाजिक, पर्यावरणीय और सांस्कृतिक पहलुओं से जुड़ी व्यापक गतिविधियों का संगम है। इस पृष्ठ पर आप आगे के लेखों में इस उत्सव की विविधताएँ, विशेष रिवाज़, स्थानीय कहानियाँ, और इस संबंध में सरकारी एवं स्वयंसेवी कदमों की जानकारी पाएँगे। तैयार रहें, क्योंकि नीचे आने वाले लेखों में आपको छठ पूजा के इतिहास, व्रत के विज्ञान, अर्घ्य की विधि और इस साल के विशेष कार्यक्रमों की विस्तृत जानकारी मिलेगी।

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