जब आरक्षण, एक सरकारी नीति है जो अनुसूचित वर्ग, अनुसूचित जनजाति, अन्य पिछड़ा वर्ग और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों को शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों और विधान सभा में निश्चित प्रतिशत सीटें सुरक्षित करती है. Also known as संरक्षित सीटें, it aims to balance historic inequities and promote social justice. साथ ही शैक्षिक आरक्षण, स्कूल, कॉलेज और विश्वविद्यालय में निर्धारित प्रतिशत के अनुसार प्रवेश दिया जाता है और नौकरी आरक्षण, सरकारी एवं अर्धसरकारी संस्थाओं में पदों का आवंटन इस ही प्रतिशत के अनुसार किया जाता है। ये दोनों पहलु संवैधानिक प्रावधान, भारतीय संविधान के अनुच्छेद 15 और 16 में आरक्षण को अधिकार के रूप में स्थापित किया गया है, जिससे नीतियों को कानूनी शक्ति मिलती है। कुल मिलाकर आरक्षण सामाजिक समानता को सुदृढ़ करता है, शिक्षा‑रोजगार के अंतर को घटाता है और पिछड़े वर्गों को मुख्यधारा में लाने का एक व्यावहारिक साधन बनता है।
पहला घटक शैक्षिक आरक्षण, मुख्य रूप से 10वीं, 12वीं, स्नातक एवं स्नातकोत्तर प्रवेश में लागू होता है। इसका सीधा परिणाम यह होता है कि अधिक संख्या में छात्र अपने-अपने वर्गों से उच्च शिक्षा हासिल कर पाते हैं, जिससे लंबी अवधि में नौकरी के अवसर बढ़ते हैं। दूसरा घटक नौकरी आरक्षण, सिविल सेवा, पुलिस, शिक्षक एवं विभिन्न प्रशासनिक पदों में निर्धारित प्रतिशत के आधार पर भर्ती सुनिश्चित करता है। इस मौखिक राष्ट्रीय स्तर पर रोजगार में विविधता लाकर आर्थिक असमानता को घटाता है। तीसरा महत्वपूर्ण पहलू सामाजिक समानता, समाजिक संरचना में असमानता को कम करके सभी वर्गों को समान मंच प्रदान करना है, जिससे सामाजिक तनाव कम होता है और सामुदायिक एकता बढ़ती है। यह तिकड़ी—शैक्षिक आरक्षण, नौकरी आरक्षण और सामाजिक समानता—एक दूसरे को पूरक करती है और भारत के विकास में संतुलित प्रगति को सम्भव बनाती है।
अब आप सोच रहे होंगे कि ये नीतियां असली जिंदगी में कैसे काम करती हैं। उदाहरण के तौर पर, दिल्ली विश्वविद्यालय में 2024‑25 में शैक्षिक आरक्षण की 15% सीटें SC, 7.5% ST और 27% OBC को दी गईं, जिससे पिछले दशक में इन वर्गों की प्रवेश दर में उल्लेखनीय बढ़ोतरी देखी गई। इसी प्रकार, केंद्र सरकार ने 2023 में एक नई नीति में सभी ग्रेड‑VIII‑XX के पदों पर 14% SC, 7% ST, और 27% OBC का आरक्षण लागू किया, जिससे अक्षम्य सामाजिक वर्गों की आर्थिक स्थिति में सुधार हुआ। इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि आरक्षण केवल कागज़ पर नहीं, बल्कि वास्तविक अवसर प्रदान करने का एक महत्वपूर्ण साधन है। आगे के लेखों में हम इस नीति के विभिन्न पहलुओं—जैसे आरक्षण में आर्थिक मानक, महिला आरक्षण, और भविष्य में संभावित सुधार—पर विस्तार से चर्चा करेंगे, ताकि आप सम्यक निर्णय ले सकें और अपने अधिकारों को समझ सकें।
बिहार की विधानसभा चुनावी लड़ाई में कांग्रेस के नेता राहुल गांधी ने 'अति पिछड़ा न्याय संकल्प' जारी किया। उन्होंने निजी संस्थानों में आरक्षण, शिक्षा में समान मौका और सरकारी भर्ती में भेदभाव हटाने का वादा किया। बीजपी ने कहा कि ये वादे केवल चुनाव के लिए हैं और कांग्रेस केवल तब ही दलित‑ओबीसी को याद रखती है। इस टकराव में दोनों पक्ष सामाजिक न्याय को अपने-अपने एजनडा का केंद्र बना रहे हैं।
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