राहुल गांधी का सामाजिक न्याय घोषणापत्र
बिहार में विधानसभा चुनाव के करीब आने पर कांग्रेस ने एक नया बॉम्ब फेंका – सामाजिक न्याय पर आधारित "अति पिछड़ा न्याय संकल्प"। इस मैनिफेस्टो में दलित, जनजातीय और पिछड़े वर्गों के लिए कई ठोस कदम लिखे गए हैं। सबसे बड़ा वादा है निजी कॉलेज‑विश्वविद्यालयों में आरक्षण लागू करना, ताकि इन संस्थानों में भी सरकारी संस्थाओं की तरह ही वर्गीय समानता मिल सके।
कांग्रेस ने यह भी कहा कि निजी स्कूलों में आरक्षित सीटों में से आधी सीटें SC/ST/OBC/EBC के बच्चों को दी जानी चाहिए। इससे शिक्षा के मैदान में वर्गीय अंतर को कम करने की उम्मीद है। इसके अलावा, सरकारी भर्ती में "नॉट फाउंड सूटेबल" जैसी डंपिंग क्लॉज़ को हटाने का प्रस्ताव है, जो अक्सर दलित उम्मीदवारों को बाहर कर देती है।
राहुल गांधी ने सोशल मीडिया पर बीजपी को झूठे खेल और ध्यान भटकाने वाली साजिशें चलाने का दंडित किया। उन्होंने कहा, "शिक्षा ही सबसे बड़ा साधन है जिससे हम इन समुदायों को आगे बढ़ा सकते हैं" और कहा कि कांग्रेस इन वर्गों के पूर्ण अधिकारों की गारंटी देने के लिए प्रतिबद्ध है।
यह मैनिफेस्टो कांग्रेस के कार्यकारी समिति की पटना बैठक के बाद आया, जो 84 साल बाद हुई थी। इस मीटिंग में पार्टी ने पिछड़े वर्गों को मजबूत करने के लिए रणनीति तय की, और इस दौरान कई वरिष्ठ नेताओं ने बीजपी के "दोहरा इंजन" सरकार की नाकामी को उजागर किया।
बीजपी की प्रतिक्रिया और चुनावी रणनीति
बीजपी ने तुरंत ही इस पर प्रतिक्रिया दे दी। उनका कहना है कि कांग्रेस और राहुल गांधी केवल चुनाव के समय ही इस वर्ग को याद करते हैं, और उनके वादे बस वोट जुटाने की चाल हैं। यह आरोप बीजपी ने कई प्रेस कॉन्फ्रेंसेस में दोहराया, जहाँ उन्होंने विशेषकर "अधिकांश एलेक्साकॉंसेज" के समय कांग्रेस के बयान को लेकर सवाल उठाए।
बीजपी ने यह भी बताया कि जब ग्रैंड अलायंस बिहार में सरकार चलाता था, तो एक कास्त सर्वे किया गया था। उसके बाद नौकरी और उच्च शिक्षा में आरक्षण को 50 प्रतिशत से बढ़ाकर 65 प्रतिशत कर दिया गया था। बीजपी इस बात को अंडरलाइन करता है कि कांग्रेस अब इन उपलब्धियों को तोड़ने की कोशिश कर रही है।
बिहार में पिछड़े वर्गों के वोटों को लेकर चल रही इस लड़ाई में बीजपी ने कहां तक पहुँचता है, इसका आंकड़ा अभी भी स्पष्ट नहीं है। पर उनका मुख्य तर्क यही है – कांग्रेस के वादे शाब्दिक हैं, पर उनका कोई ठोस कार्य नहीं दिखता। इस बीच, बीजपी ने अपने प्रोजेक्ट्स में निजी संस्थानों में आरक्षण को थोपने का विरोध किया, और कहा कि यह नीति आर्थिक विकास को बाधित कर सकती है।
जैसे-जैसे चुनाव का काउंटी काउंटर चल रहा है, दोनों पार्टियों ने अपने-अपने एलेक्सा में सामाजिक न्याय को केन्द्रीकृत किया है। कांग्रेस का दावा है कि वह पिछड़े वर्गों की शिक्षा और रोज़गार में वास्तविक बदलाव लाएगी, जबकि बीजपी इस बात को उजागर कर रहा है कि कांग्रेस के आह्वान केवल वोटों का साधन है।
अंत में, इस विवाद का असर बिहार की राजनीति में कहीं अधिक गहरा हो सकता है। अगर कांग्रेस वास्तव में इन वादों को लागू कर पाती है, तो यह पिछड़े वर्गों के लिए बड़ी जीत होगी। वहीं, अगर बीजपी की बताई गई रणनीति सफल होती है, तो यह कांग्रेस के लिए एक बड़ी धक्का साबित हो सकता है। चुनावी माहौल में इस तरह के प्रतिद्वंद्विता से मतदाताओं के निर्णय पर सीधा असर पड़ने की संभावना है।
Dinesh Bhat
ये सब वादे तो हर चुनाव में होते हैं। असली सवाल ये है कि जब सरकार बने तो इन्हें लागू करने की इच्छा होगी या नहीं।
Indranil Guha
कांग्रेस के ये वादे बस चुनावी नाटक हैं। बीजेपी ने बिहार में आरक्षण 65% तक बढ़ा दिया है - अब कांग्रेस उसे तोड़ने की कोशिश कर रही है। ये देश के लिए खतरनाक है।
srilatha teli
शिक्षा का अधिकार एक मौलिक अधिकार है। अगर हम वर्गीय समानता को नजरअंदाज करते हैं, तो हमारा लोकतंत्र बस एक नाममात्र का रह जाएगा। ये वादे सिर्फ वोट नहीं, न्याय की मांग हैं।
Sohini Dalal
मुझे लगता है बीजेपी भी बहुत ज़्यादा ड्रामा कर रहा है। जब वो सत्ता में हैं, तो आरक्षण को बढ़ाते हैं, और जब कोई और कुछ कहता है तो उसे बुरा बताते हैं।
Suraj Dev singh
अगर निजी कॉलेजों में आरक्षण लागू हो जाए, तो ये शिक्षा के गुणवत्ता को प्रभावित नहीं करेगा? कुछ जगहों पर तो पहले से ही सीटें खाली पड़ी हैं।
Arun Kumar
ये सब बहुत बड़ी बात है... लेकिन जब तक गांधी परिवार नहीं बदलता, तब तक कुछ नहीं बदलेगा। अब तक क्या किया? कुछ नहीं। बस बोलते रहे।
Manu Tapora
आरक्षण की सीमा 50% क्यों है? क्या ये संविधान का नियम है या सुप्रीम कोर्ट का फैसला? क्या इसे बदला जा सकता है?
haridas hs
यह विवाद एक सामाजिक असमानता के अंतर्गत एक विश्लेषणात्मक अंतराल को प्रकट करता है, जिसमें शिक्षा के अधिकार के अभिव्यक्तियों के बीच एक अर्थव्यवस्था का संघर्ष हो रहा है। ये वादे सिर्फ नीतिगत नहीं, बल्कि शक्ति के संरचनात्मक वितरण के विषय हैं।
Shiva Tyagi
कांग्रेस तो हमेशा से बेकार है। बीजेपी ने जो किया, वो वास्तविक काम है। ये वादे बस गांधी परिवार की विरासत है - बोलने की, न काम करने की।
Pallavi Khandelwal
मैंने देखा है बिहार में आरक्षण के तहत नौकरी मिलने वाले लोगों की जिंदगी कैसे बदल गई। ये वादे सिर्फ शब्द नहीं - ये जीवन बदलने वाले हैं।
Mishal Dalal
आरक्षण को बढ़ाना गलत है! ये निजी क्षेत्र को बर्बाद कर देगा! इससे नौकरियां नहीं, असमानता बढ़ेगी! ये बस राजनीति है, न्याय नहीं!
Pradeep Talreja
कांग्रेस के वादे बस चुनावी बातचीत हैं। जब वो सत्ता में थे, तो इन बातों पर कभी काम नहीं हुआ।
Rahul Kaper
अगर आरक्षण को निजी क्षेत्र में लागू किया जाए, तो ये एक अच्छा निर्णय होगा। शिक्षा और रोजगार में समानता नहीं तो लोकतंत्र का क्या अर्थ है?
Manoranjan jha
बीजेपी का दावा कि उन्होंने आरक्षण 65% तक बढ़ाया है - ये सच है, लेकिन इसका असर क्या रहा? क्या वास्तविक विकास हुआ? या सिर्फ आंकड़े बढ़े?
ayush kumar
मैं एक ओबीसी लड़का हूँ। मैंने अपने भाई को निजी कॉलेज में पढ़ाया, लेकिन आरक्षण नहीं मिला। उसकी जिंदगी बर्बाद हो गई। ये वादा अगर सच हुआ, तो मैं रो जाऊंगा।
Soham mane
ये सब बहुत अच्छा है। लेकिन अगर हम बस वादे करते रहेंगे, तो कुछ नहीं होगा। काम करना होगा।
Neev Shah
कांग्रेस के वादे तो हमेशा से ऐसे ही होते हैं - बड़े, बहुत बड़े, और बिल्कुल अव्यावहारिक। निजी कॉलेजों में आरक्षण? ये तो बाजार के नियमों को तोड़ने जैसा है। ये विकास के खिलाफ है।
Chandni Yadav
आरक्षण का आधार आर्थिक दुर्बलता होना चाहिए, न कि जाति। ये सब जाति-आधारित विभाजन है - ये देश को विभाजित करता है।
Raaz Saini
कांग्रेस तो हमेशा से लोगों के भावों का फायदा उठाती है। ये वादे बस उनके विश्वासघात का एक और चरण हैं। उन्होंने कभी कुछ नहीं किया।
Vikrant Pande
तुम सब बहुत बातें कर रहे हो, लेकिन क्या किसी ने ये देखा कि बीजेपी ने जो 65% आरक्षण दिया, उसके बाद कितने लोगों को नौकरी मिली? कितने बच्चों को शिक्षा मिली? आंकड़े दिखाओ। बस बोलने से कुछ नहीं होता।