जब भी आप भारत के टेस्ट इतिहास की बात सुनते हैं तो अनिल कुंबले का नाम ज़रूर आता है। एक ऐसे खिलाड़ी जो रफ़्तार, कंट्रोल और सटीकता को मिलाकर कई रिकॉर्ड बना गया। अगर आप क्रिकेट पसंद करते हैं तो उनके बारे में जानना आपके लिए फायदेमंद रहेगा।
अनिल कुम्बले का जन्म 17 अक्टूबर 1970 को बेंगलुरु में हुआ था। बचपन से ही गेंदबाज़ी की ओर आकर्षित हुए, स्कूल के मैदान पर उनकी स्पिन और फास्ट बॉल दोनों चलती थीं। उन्होंने अपना पहला पेशेवर मैच 1990 में कर्नाटक के लिए खेला और जल्दी ही अपनी तेज़ गति वाली आउटसाइड-स्पिन से सभी को प्रभावित किया। शुरुआती दिनों में उनका लक्ष्य सिर्फ विकेट लेना नहीं था, बल्कि टीम की जीत में अहम योगदान देना था।
कुंबले ने 1990 के दशक में भारतीय टेस्ट टीम में जगह बनायी। उनकी सबसे यादगार जीत 1999 का मैड्रिड टेस्ट थी, जहाँ उन्होंने पाँच विकेट लेकर भारत को जीत दिलाई। लेकिन असली इतिहास तब लिखा गया जब उन्होंने 1999‑2000 की सरीज़ में पाकिस्तान पर एक ओवर में सात विकेट लिये – यह रिकॉर्ड अब तक नहीं टूटा है। इस प्रदर्शन ने उन्हें ‘स्पिन क्वीन’ के रूप में स्थापित किया।
कुंबले ने कुल मिलाकर 133 टेस्ट मैच खेले, 619 विकेट लिए और 10‑5‑0 की बेस्ट बॉलिंग फ़िगर हासिल की। यह आंकड़े न केवल भारत के इतिहास में बल्कि विश्व स्तर पर भी दुर्लभ हैं। उनके पास सबसे ज्यादा टेस्ट विकेट लेने का भारतीय रिकॉर्ड था, जो आज भी कई युवा गेंदबाज़ों को प्रेरित करता है।
उनकी एक खास बात थी – बैटिंग में भी योगदान देना। उन्होंने 8 बार फिफ्टी और दो शतक बनाए, जिससे टीम के कुल स्कोर में मदद मिली। यह बहु‑कौशलता उन्हें सभी समय के सर्वश्रेष्ठ ऑलराउंडरों में से एक बनाती है।
इंटरनेशनल क्रिकेट से रिटायर होने के बाद कुम्बले ने कोचिंग और कमेंट्री का काम शुरू किया। उन्होंने भारतीय टीम की बैटिंग लाइन‑अप को सशक्त बनाने में मदद की और कई युवा खिलाड़ियों को सही दिशा दिखाई। आज भी उनका आवाज़ टीवी पर सुनना या उनके विचार पढ़ना क्रिकेट प्रेमियों के लिए प्रेरणा है।
कुंबले का जीवन सिर्फ खेल तक सीमित नहीं रहा, उन्होंने सामाजिक कामों में भी हाथ बंटाया। विभिन्न चैरिटी इवेंट्स और शिक्षा प्रोजेक्ट्स में उनका योगदान सराहनीय है। उनके नाम पर कई स्कॉलरशिप चलती हैं जो उभरते टैलेंट को समर्थन देती हैं।
अगर आप क्रिकेट सीख रहे हैं या सिर्फ़ खेल का आनंद ले रहे हैं, तो अनिल कुंबले की कहानी से बहुत कुछ सीख सकते हैं – मेहनत, धीरज और हमेशा टीम के लिए आगे बढ़ने का जज़्बा। उनका उदाहरण दिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन हों, सच्ची लगन से आप इतिहास रच सकते हैं।
अंत में यही कहूँगा कि अनिल कुंबले सिर्फ़ एक खिलाड़ी नहीं, बल्कि भारतीय खेल की पहचान हैं। उनके रिकॉर्ड, उनकी शिक्षाएँ और उनका जुनून आज के युवा खिलाड़ियों को दिशा देता है। अगली बार जब आप क्रिकेट देखें तो याद रखें – हर गेंद में कुछ सीखने को मिल सकता है, बस नजरें खुली रखिए।
पूर्व भारतीय क्रिकेटर डेविड जॉनसन ने 53 वर्ष की आयु में आत्महत्या कर ली, जिससे क्रिकेट जगत सदमे में है। जॉनसन ने 1996 में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ अपना डेब्यू किया था और उनका अंतिम मैच भी उसी साल हुआ। अनिल कुंबले समेत अन्य सदस्यों ने उनके निधन पर संवेदना व्यक्त की है।
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