भारतीय क्रिकेट जगत में एक दुखद घटना ने सबको स्तब्ध कर दिया है। पूर्व भारतीय क्रिकेटर डेविड जॉनसन ने 53 वर्ष की आयु में आत्महत्या कर ली है। इस खबर ने न केवल उनके परिवार और दोस्तों को बल्कि पूरे क्रिकेट समुदाय को भी गहरे दुःख में डाल दिया है।
डेविड जॉनसन का जन्म 16 अक्टूबर 1966 को हुआ था और उन्होंने भारतीय क्रिकेट टीम में अपना पहला मैच 10 अक्टूबर 1996 को दिल्ली में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेला था। उन्होंने सिर्फ दो टेस्ट मैच खेले, जिनमें उन्होंने 3 विकेट लिए और कुल 8 रन बनाए। उनका औसत प्रदर्शन 47.67 की गेंदबाजी औसत और 4 की बल्लेबाजी औसत के साथ रहा।
जॉनसन ने अपनी अंतरराष्ट्रीय करियर खत्म होने के बाद घरेलू क्रिकेट और अन्य लीग में भी खेला। उनकी क्रिकेट योग्यता और कौशल ने उन्हें क्रिकेट प्रेमियों के दिलों में एक खास जगह दिलाई थी। लेकिन उनके जीवन के इस अचानक अंत पर सभी हैरान और दुखी हैं।
अनिल कुंबले, भारतीय क्रिकेट टीम के पूर्व कप्तान और जॉनसन के एक कालिग, ने सोशल मीडिया पर अपनी संवेदना व्यक्त करते हुए कहा, "यह सुनकर बेहद दुःख हुआ कि डेविड जॉनसन अब हमारे बीच नहीं रहे। वह बहुत जल्द चले गए।" कुंबले के इस संदेश ने क्रिकेट समुदाय और फैंस के बीच गहरा असर छोड़ा।
डेविड जॉनसन के जाने के पीछे के कारणों पर अभी तक स्पष्टता नहीं आ पाई है। खेल जगत से जुड़े कई लोग, जिनमें उनके पूर्व साथी और कोच शामिल हैं, इस घटना के बाद से गहरे सदमे में हैं और उनके परिवार को इस मुश्किल घड़ी में सांत्वना दे रहे हैं।
जॉनसन की आत्महत्या से मानसिक स्वास्थ्य और खिलाड़ियों के ऊपर दबाव के मुद्दे पर भी चर्चा हो रही है। वर्तमान में, खेल के क्षेत्र में मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को बार-बार रेखांकित किया जा रहा है। यह घटना एक बार फिर से इस बात को उजागर करती है कि खिलाड़ियों पर कितने प्रकार के दबाव होते हैं और मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता।
भारतीय क्रिकेट बिसाइड उनके सम्मान में सदन के सामने श्रद्धांजलि देने की योजना बना रहे हैं। उनकी आत्महत्या ने क्रिकेट जगत को झकझोर कर रख दिया है और लोग उनके परिवार और दोस्तों के साथ सहानुभूति जता रहे हैं।
उनकी आत्महत्या के कारणों पर जांच अभी जारी है और यह देखना बाकी है कि इस घटना से क्या सबक लिए जा सकते हैं। डेविड जॉनसन का जीवन हमें यह सिखाता है कि मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लिया जाना चाहिए और खिलाड़ियों के लिए एक सहायक और मजबूत मानसिक स्वास्थ्य प्रणाली का निर्माण किया जाना चाहिए।
किसी भी व्यक्ति की आत्महत्या की खबर हमेशा परेशान करने वाली होती है। यह हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि क्या हमें अपने करीबियों और प्रियजनों की मानसिक स्थिति के बारे में अधिक संजीदा होने की आवश्यकता है। डेविड जॉनसन की अचानक मौत हमें यह याद दिलाती है कि हमें अपने समय के प्रसिद्ध और सफल व्यक्तियों का भी उतना ही खयाल रखना चाहिए जितना अपने दोस्तों और परिवार के सदस्यों का।
इस त्रासद घटना ने सभी को यह सोचने पर मजबूर कर दिया है कि कहीं न कहीं समाज के रूप में हमें अपनी जिम्मेदारियों को और भी बेहतर तरीके से निभाना होगा। खिलाड़ियों और सभी व्यक्तियों के मानसिक स्वास्थ्य के प्रति जागरूकता बढ़ाना और उचित समर्थन प्रणाली का निर्माण करना आज की सबसे बड़ी जरूरत है।
डेविड जॉनसन की आत्महत्या ने एक बार फिर से यह सिद्ध कर दिया है कि खेल जगत में भी मानसिक स्वास्थ्य का महत्व कम नहीं है। हमें इस दिशा में और भी अधिक कार्य करने की आवश्यकता है ताकि किसी और खिलाड़ी या व्यक्ति को इस तरह का कठोर कदम उठाने की आवश्यकता न पड़े।
आशा है कि डेविड जॉनसन की आत्महत्या से हम सबक लेते हुए मानसिक स्वास्थ्य के महत्व को और भी गहराई से समझ पाएंगे और खिलाड़ियों और आम नागरिकों के लिए बेहतर और सहायक माहौल का निर्माण कर पाएंगे।
© 2025. सर्वाधिकार सुरक्षित|
Dipak Moryani
इस खबर ने मुझे झटका दे दिया। डेविड जॉनसन जैसे खिलाड़ी जिनका क्रिकेट में सिर्फ दो टेस्ट थे, लेकिन उनकी मेहनत और लगन को कोई नहीं भूल सकता। खेल के बाहर जीवन कितना कठिन हो सकता है, ये सबक हमें देता है।
Jaya Bras
आत्महत्या? शायद उन्हें लगा कि अब उनका कोई मूल्य नहीं रह गया। खेल में फेल हो गए, फिर जीवन में भी।
Rupesh Sharma
मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज मत करो। ये सिर्फ खिलाड़ियों का मुद्दा नहीं, हर आम इंसान का मुद्दा है। अगर कोई तुम्हारे साथ अजीब बर्ताव कर रहा हो, तो बस बोल दो - 'तू ठीक है?' ये छोटी बात जान बचा सकती है।
Harsha kumar Geddada
हम जिस तरह से खिलाड़ियों को आदर देते हैं, वो सिर्फ उनके स्कोरबोर्ड पर निर्भर करता है। एक बार वो अपना रिकॉर्ड खो देते हैं, तो उन्हें भूल जाते हैं। डेविड जॉनसन ने दो टेस्ट खेले, लेकिन उनके दिल में एक अनंत युद्ध चल रहा था - जिसकी किसी ने जानकारी नहीं ली। हम सब इस तरह के लोगों को देखते हैं, लेकिन सवाल नहीं पूछते। ये नहीं है कि वो टूटे, ये है कि हमने उन्हें टूटने के लिए छोड़ दिया।
Ravi Kant
भारत में हम खेल को धर्म की तरह पूजते हैं, लेकिन खिलाड़ियों के दर्द को नहीं समझते। जब वो जीतते हैं, तो उन्हें भगवान बना देते हैं। जब हारते हैं, तो उन्हें अपराधी बना देते हैं। डेविड जॉनसन की मौत एक दर्दनाक सांस्कृतिक असफलता है।
Shivakumar Kumar
मैंने उन्हें दिल्ली के एक घरेलू मैच में खेलते देखा था - एक शांत आदमी, जिसकी गेंदबाजी में एक अजीब सी शान थी। लोग उसे भूल गए, लेकिन मैं नहीं। उनके बारे में सोचकर मेरी आँखें भर आईं। हमें बस याद रखना है - खिलाड़ी भी इंसान होते हैं।
Vijay Kumar
मानसिक स्वास्थ्य का मुद्दा तभी सुलझेगा जब हम इसे एक बीमारी के रूप में मानेंगे, न कि एक कमजोरी के रूप में।
saikiran bandari
कोई आत्महत्या करता है तो सब दुखी होते हैं लेकिन कोई नहीं सुनता जब वो बोलता है
Subham Dubey
ये सब एक व्यवस्थित षड्यंत्र है। खेल संघ और मीडिया इन घटनाओं को छिपाते हैं ताकि लोग खेल को असली न देखें। डेविड जॉनसन की मौत के बाद जो भी बयान आए हैं, वो सब नाटक हैं। असली जांच कभी नहीं होगी।
Abhishek Rathore
मैं नहीं जानता कि डेविड के साथ क्या हुआ, लेकिन अगर कोई मुझे बताए कि उसने किसी से बात की है तो मैं उसके लिए दुआ करूंगा। बस यही बात है - किसी के साथ बैठो, उसे सुनो। बाकी सब बाहरी चीजें हैं।
Arun Sharma
यह घटना खेल प्रशासन की निष्क्रियता का स्पष्ट परिणाम है। एक ऐसे खिलाड़ी को जिसका अंतरराष्ट्रीय करियर दो टेस्ट में समाप्त हो गया, उसके लिए कोई रिटायरमेंट प्लान, काउंसलिंग सिस्टम या सामाजिक समर्थन नहीं था। यह व्यवस्था की असफलता है, न कि किसी व्यक्ति की कमजोरी।
sachin gupta
डेविड जॉनसन? क्या वो वो था जिसने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ वो बाउंसर फेंका था जिसे बाद में टीवी पर बार-बार दिखाया गया? याद है, उसके बाद वो बहुत शांत हो गए थे। लोग तो बस रन और विकेट देखते हैं। दिल की आवाज़ नहीं सुनते।
Rajeev Ramesh
इस घटना के बाद भारतीय क्रिकेट बोर्ड को एक लगातार मानसिक स्वास्थ्य समर्थन प्रणाली लागू करनी चाहिए, जिसमें हर खिलाड़ी के लिए निःशुल्क काउंसलिंग और नियमित मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन अनिवार्य हो। यह एक आधिकारिक नीति होनी चाहिए, न कि एक अनुशासनात्मक बयान।
Harsha kumar Geddada
अनिल कुंबले ने जो कहा, वो सच है - वो बहुत जल्द चले गए। लेकिन अगर वो अपने दिनों में एक बार भी अपने दर्द को बाहर निकाल पाते, तो शायद आज वो हमारे बीच होते। हम सब अपने दर्द को छिपाते हैं - खिलाड़ी, नौकरी करने वाले, माता-पिता, बच्चे। लेकिन जब दर्द इतना गहरा हो जाए कि वो बाहर निकलने का एकमात्र रास्ता खुद को खत्म करना हो, तो ये सवाल उठता है - हमने उन्हें जीने का रास्ता दिया क्या? या हमने उन्हें बस खेल के लिए बनाया, और फिर उन्हें खुद के लिए भूल दिया?