राष्ट्रपति जो बिडेन ने अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट में बड़े सुधारों की संभावनाओं पर विचार करने का निर्णय लिया है। इसके तहत न्यायाधीशों के जीवनभर के कार्यकाल को समाप्त करना और अदालत की नैतिक संहिता में बदलाव शामिल हैं। यह प्रस्ताव बिडेन के पिछले रुख से काफी अलग है, जिसमें उन्होंने इन सुधारों के प्रति अनिच्छा दिखाई थी।
हाल के कुछ फैसलों के कारण सुप्रीम कोर्ट की बहुत अधिक आलोचना हुई है। इनमें सबसे प्रमुख निर्णय Roe v. Wade मामले में गर्भपात के अधिकार को उलटने का फैसला था। इसके अतिरिक्त, सुप्रीम कोर्ट ने 'आधिकारिक कृत्यों' के लिए राष्ट्रपतियों को दी गई व्यापक उन्मुक्ति को सत्यापित किया। कोर्ट ने बंदूक नियमन, पर्यावरण मामलों और पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के कानूनी मामलों पर भी कई महत्वपूर्ण निर्णय दिए हैं। हाल ही में, कोर्ट ने बिडेन के छात्र ऋण माफी योजना को भी खारिज कर दिया था।
सुप्रीम कोर्ट के ये फैसले कई बार राजनीतिक रूप से दिखाई दिए हैं, और कोर्ट का झुकाव अक्सर रूढ़िवादी पक्ष की ओर अधिक माना गया है। ऐसे में बिडेन द्वारा प्रस्तावित ये सुधार कोर्ट की विश्वसनीयता को पुनर्स्थापित करने का एक प्रयास माने जा सकते हैं। लेकिन, इन सुधारों का मार्ग आसान नहीं होगा। प्रस्तावित परिवर्तन को विभाजित कांग्रेस में गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा।
इन सुधारों के अलावा, राष्ट्रपति बिडेन संवैधानिक संशोधन का भी समर्थन कर रहे हैं, जिससे सुप्रीम कोर्ट द्वारा पहचाने गए व्यापक उन्मुक्ति को समाप्त किया जा सके। यह रणनीति आगामी नवम्बर चुनाव से पहले एक महत्वपूर्ण चुनावी मुद्दा बन सकती है। कई विश्लेषकों का मानना है कि बिडेन का यह कदम उनके राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ाने और कानून की शुचिता को बनाए रखने के लिए आवश्यक है।
जनता के बीच सुप्रीम कोर्ट सुधार को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएं हैं। कुछ लोगों का मानना है कि न्यायपालिका में ऐसे सुधार जरूरी हैं ताकि राजनीतिक हस्तक्षेप को कम किया जा सके, जबकि कुछ लोग इसे न्यायपालिका की स्वतंत्रता के खिलाफ मानते हैं। बिडेन के इस कदम पर विस्तृत चर्चा और बहस की संभावना है।
राष्ट्रपति जो बिडेन का सुप्रीम कोर्ट में सुधार का यह प्रयास अमेरिकी न्याय प्रणाली में एक महत्वपूर्ण परिवर्तन ला सकता है। इसके सफल होने पर, यह कदम भविष्य में अमेरिकी न्यायपालिका की दिशा और दशा को निर्धारित कर सकता है।
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Harsha kumar Geddada
ये सुप्रीम कोर्ट का सुधार बस एक राजनीतिक धोखा है। जब तक हम न्यायपालिका को राजनीति के बाहर नहीं रखेंगे, तब तक कोई सुधार बस एक नए रूप में पुरानी बीमारी को बढ़ाएगा। अमेरिका में न्याय की अवधारणा ही बदल चुकी है - अब ये जीत या हार का खेल बन गया है। बिडेन का ये फैसला भी एक चुनावी नाटक है, जिसका उद्देश्य उनके आधार को जगाना है, न कि न्याय को सुधारना।
sachin gupta
अरे भाई, ये सब तो बस इंटेलेक्चुअल बॉक्सिंग है। न्यायपालिका को रिफॉर्म करने की बात कर रहे हो, पर क्या तुम्हें पता है कि संविधान का एक अनुच्छेद है जो न्यायाधीशों के लिए जीवनकाल की व्यवस्था करता है? इसे बदलने के लिए दो-तिहाई बहुमत चाहिए - और अभी तो डेमोक्रेट्स को अपने अंदर ही बात नहीं बन रही। ये सब ट्वीट वाली बातें हैं।
Shivakumar Kumar
सुनो, ये सब बहसें तो बहुत अच्छी हैं, लेकिन एक बात भूल रहे हो - अमेरिका का न्याय अब बहुत अधिक व्यक्तिगत और राजनीतिक हो चुका है। न्यायाधीश अब सिर्फ नियम नहीं, बल्कि अपनी दृष्टि लाए हुए हैं। बिडेन का ये प्रयास अगर एक वास्तविक विचारधारा के साथ आता, तो शायद ये असली बदलाव ला सकता। लेकिन अब तो ये बस एक रिबटन की तरह है - नए रंग के साथ, पुरानी बीमारी के साथ।
saikiran bandari
कोर्ट को रिफॉर्म करो या नहीं करो ये तो तुम्हारी बात है पर अगर तुम इसे बदलने की कोशिश करोगे तो ये अमेरिका नहीं रहेगा
Rashmi Naik
अरे यार ये सब तो बस न्यायपालिका की अधिकारिता को नियंत्रित करने की कोशिश है जिसे हम डेमोक्रेसी के नाम पर बोलते हैं... पर असल में ये एक एक्सेक्यूटिव ओवरराइड है... ये तो बस एक नया फॉर्मेट है पुराने डिक्टेटरशिप का... ये बिडेन का नया एजेंडा है और ये लोग इसे रिफॉर्म बता रहे हैं... बस अच्छा लगे तो लग जाएगा... 😒
Vishakha Shelar
मैं रो रही हूँ... ये सब बिल्कुल बेकार है... मुझे लगता है कि अब कोई न्याय नहीं है... कोई न्याय नहीं है... कोई न्याय नहीं है... 😭
Ayush Sharma
संविधान के तहत न्यायाधीशों के जीवनकाल की व्यवस्था एक जानबूझकर बनाई गई बात है। यह न्याय की स्वतंत्रता के लिए एक सुरक्षा तंत्र था। अगर अब इसे बदल दिया जाता है, तो यह न्याय के बजाय राजनीति के नियंत्रण में आ जाएगा। इसलिए, इस प्रस्ताव का विश्लेषण करते समय हमें इतिहास को भी ध्यान में रखना चाहिए।
charan j
बिडेन का ये सब बकवास है। न्यायपालिका को तोड़ने की कोशिश कर रहा है। कोई बदलाव नहीं चाहिए। बस इतना ही।
Kotni Sachin
मैं इस बात से पूरी तरह सहमत हूँ कि न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता है - लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि हम उसकी स्वतंत्रता को खत्म कर दें। जीवनकाल की व्यवस्था अच्छी है, क्योंकि यह न्यायाधीशों को राजनीतिक दबाव से बचाती है। लेकिन, नैतिक संहिता का अभाव एक बड़ी समस्या है। यहाँ तक कि एक न्यायाधीश भी अपने निर्णयों के बारे में अपने व्यक्तिगत लाभों के बारे में बताने के लिए बाध्य होना चाहिए। यह बहुत जरूरी है।
Nathan Allano
अगर हम अमेरिका के न्याय प्रणाली को सुधारना चाहते हैं, तो हमें सबसे पहले ये समझना होगा कि ये न्याय अब किसके लिए है - आम आदमी के लिए या धनवानों के लिए? जब कोर्ट छात्र ऋण माफी को रोक देता है, लेकिन कॉर्पोरेट लोगों को अपनी व्यापक उन्मुक्ति दे देता है - तो ये सिर्फ अन्याय है। बिडेन का प्रयास शायद अधूरा है, लेकिन ये कम से कम एक दिशा में है। अगर हम इसे रोक देंगे, तो ये अमेरिका का अंत हो सकता है।
Guru s20
मैं बिडेन के इस प्रयास को समर्थन करता हूँ। न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ाना जरूरी है। लेकिन, इसके लिए हमें लोगों को शामिल करना होगा - न कि बस कांग्रेस में बहस करना। एक जनमत संग्रह या नागरिक सम्मेलन के माध्यम से ये सुधार अधिक वैध लगेंगे।
Raj Kamal
मुझे लगता है कि ये सुधार बहुत जरूरी हैं, लेकिन एक बात जो मैं नहीं समझ पा रहा हूँ - क्या अगर हम न्यायाधीशों के कार्यकाल को सीमित कर दें तो उनकी निर्णय लेने की स्वतंत्रता पर असर नहीं पड़ेगा? मैंने पढ़ा है कि जब न्यायाधीश को लगता है कि वो अगले चुनाव में नहीं रहेंगे, तो वो अपने फैसलों को राजनीतिक दबाव के अनुसार बदल देते हैं। तो क्या ये सुधार वास्तव में न्याय को बेहतर बनाएगा या उसे और ज्यादा राजनीतिक बना देगा? मैं थोड़ा भ्रमित हूँ...
Rahul Raipurkar
ये सब बस एक लोकप्रियता का खेल है। न्याय को राजनीति के बाहर रखना है - इसे बदलना है तो वो राजनीति बन जाएगी। बिडेन का ये फैसला एक लोकप्रिय आवाज़ है, लेकिन एक गहरा विचार नहीं। इस तरह के सुधार तब आते हैं जब न्यायपालिका ने अपने आप को बर्बाद कर दिया हो - न कि जब कोई राष्ट्रपति चुनाव के लिए तैयार हो रहा हो।
PK Bhardwaj
हमें इस बात पर ध्यान देना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट का अधिकार अब न्याय के बजाय नियम बनाने की शक्ति बन गया है। जब एक न्यायाधीश अपने व्यक्तिगत विचारों को संविधान के रूप में प्रस्तुत करता है, तो यह एक अस्थिर आधार है। बिडेन के प्रस्ताव में एक बड़ी कमी है - यह न्यायाधीशों की नियुक्ति की प्रक्रिया को नहीं बदलता। अगर हम न्यायाधीशों की नियुक्ति को अधिक पारदर्शी और जनता के अनुकूल बनाएँ, तो न्याय की विश्वसनीयता बढ़ेगी।
Soumita Banerjee
अरे यार, ये सब तो बस एक बड़ा फ्रेमिंग वाला ट्रिक है। जब तक हम न्यायपालिका के बारे में जनता को शिक्षित नहीं करेंगे, तब तक ये सब बस एक ट्रेंड होगा। और फिर भी, ये सुधार किसके लिए हैं? वो लोग जो अपने घरों में बिडेन के ट्वीट्स देख रहे हैं? नहीं, ये तो बस एक बाहरी बैनर है।
Navneet Raj
मैं बिडेन के इस प्रयास को समर्थन करता हूँ, लेकिन इसके लिए एक व्यवस्थित दृष्टिकोण चाहिए। एक अलग समिति बनाई जाए जिसमें न्यायाधीश, वकील, अध्यापक और सामान्य नागरिक शामिल हों - और उन्हें एक वर्ष तक चर्चा करने का समय दिया जाए। फिर जनमत संग्रह के बाद ही कोई बदलाव किया जाए। बिना इसके, ये सुधार बस एक अस्थायी भावना होगा।
Neel Shah
बिडेन ने अभी तक एक भी बड़ा फैसला नहीं लिया है... ये सब बस बातें हैं... और ये सुधार? ये तो बस एक ट्रम्प वाला फेक न्यूज़ है... 😒😂