INDIA गठबंधन ने पूर्व सुप्रीम कोर्ट जज B सुदर्शन रेड्डी को उपराष्ट्रपति चुनाव के लिए अपना संयुक्त उम्मीदवार बना दिया। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने इसे 'वैचारिक लड़ाई' कहा और रेड्डी की छवि को 'प्रगतिशील व साहसी न्यायाधीश' के रूप में पेश किया। इसके साथ ही विपक्ष ने संदेश दिया कि यह मुकाबला सिर्फ संख्या का नहीं, बल्कि संविधान की भावना और संस्थागत स्वायत्तता की परिभाषा का भी होगा।
रेड्डी की उम्मीदवारी ऐसे समय आई है जब संसद के ऊपरी सदन का संचालन, बहस की गुणवत्ता और विपक्ष-सरकार के बीच संवाद का तरीका लगातार चर्चा में है। उपराष्ट्रपति राज्यसभा के सभापति होते हैं और सदन की गरिमा, अनुशासन और एजेंडा तय करने में निर्णायक भूमिका निभाते हैं। विपक्ष मानता है कि एक वरिष्ठ न्यायविद की मौजूदगी इस पद पर संतुलन ला सकती है और प्रक्रियागत सख्ती के साथ निष्पक्षता भी बनी रह सकती है।
घोषणा के तुरंत बाद विपक्षी खेमे ने तटस्थ या क्षेत्रीय दलों से संपर्क तेज किया। सूत्रों के मुताबिक, भारत राष्ट्र समिति (BRS), वाईएसआर कांग्रेस (YSRCP) और तेलुगू देशम पार्टी (TDP) जैसे दलों को साधने की कोशिश हो रही है। वजह साफ है—रेड्डी का पेशेवर अतीत आंध्र-तेलंगाना की राजनीति से जुड़ा रहा है, और 1980-90 के दशक में उनकी कानूनी सलाहकार की भूमिका ने उन्हें क्षेत्रीय नेतृत्व के करीब रखा। यही कड़ी आज विपक्ष के लिए संभावित पुल साबित हो सकती है।
रेड्डी ने खुद कहा कि वे सभी दलों, यहां तक कि NDA से भी समर्थन की अपील करते हैं। उन्होंने यह भी जोड़ा कि विपक्ष के साझा उम्मीदवार के रूप में वे 'देश के करीब 60% मतदाताओं की आवाज' का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनकी यह लाइन चुनाव को पार्टी बनाम पार्टी से आगे ले जाकर संविधान, अधिकारों और न्याय के फ्रेम में रखने की कोशिश दिखाती है।
दूसरी ओर, NDA ने CP राधाकृष्णन को मैदान में उतारा है। वे तमिलनाडु के अनुभवी भाजपा नेता और पूर्व सांसद रहे हैं। उनके नाम से सत्तापक्ष का संदेश साफ है—वे संगठन और राजनीतिक प्रबंधन पर भरोसा कर रहे हैं और मुकाबले को 'दो विचारों का टकराव' बना कर दिखाना चाहते हैं।
B सुदर्शन रेड्डी आंध्र प्रदेश उच्च न्यायालय में जज रहे, फिर गुवाहाटी उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश बने और 2007 में सुप्रीम कोर्ट पहुंचे। जुलाई 2011 में वे सेवानिवृत्त हुए। अपने करियर के दौरान वे उन फैसलों के लिए पहचाने गए जो राज्य की ताकत और नागरिक अधिकारों के बीच संतुलन का आग्रह करते हैं। 2011 में छत्तीसगढ़ में 'सलवा जुडुम' पर आए अहम फैसले में नागरिकों को हथियारबंद कर लड़ाई में झोंकने की नीति पर सुप्रीम कोर्ट ने कड़ी टिप्पणी की थी। उसी दौर में विदेशी खातों और काले धन के मामलों की निगरानी के लिए विशेष जांच दल (SIT) के गठन का आदेश देने वाली पीठ में भी रेड्डी शामिल रहे। इन दोनों मामलों ने उन्हें अधिकारों की रक्षा करने वाले जज के रूप में अलग पहचान दी।
कांग्रेस अध्यक्ष खड़गे ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में कहा कि रेड्डी के कई फैसले आम लोगों, कमजोर तबकों और संविधान के मूल्यों के पक्ष में गए। विपक्ष इसी साख को राजनीतिक पूंजी में बदलना चाहता है—खासकर तब जब संसदीय बहसों में निष्पक्षता और मर्यादा पर सवाल उठते रहे हैं।
अब बात प्रक्रिया की। उपराष्ट्रपति का चुनाव संसद के दोनों सदनों—लोकसभा और राज्यसभा—के निर्वाचित और नामित सदस्यों से मिलकर बने इलेक्टोरल कॉलेज द्वारा होता है। वोटिंग आनुपातिक प्रतिनिधित्व की एकल हस्तांतरणीय मत (STV) प्रणाली से होती है। हर सांसद को उम्मीदवारों की प्राथमिकता क्रम में रैंकिंग देनी होती है और किसी को बहुमत न मिलने पर वोट अगले पसंद के आधार पर ट्रांसफर होते हैं। चुनाव गुप्त मतपत्र से होता है और परिणाम आमतौर पर उसी दिन घोषित कर दिए जाते हैं।
अधिकारिक कैलेंडर तय है—नामांकन की आखिरी तारीख 21 अगस्त, स्क्रूटिनी 22 अगस्त और नाम वापसी की डेडलाइन 25 अगस्त। मतदान 9 सितंबर को होगा और काउंटिंग भी उसी दिन पूरी कराई जाएगी। विपक्ष 21 अगस्त को नामांकन दाखिल करने के साथ सभी सांसदों की बैठक केंद्रीय कक्ष में बुलाने की योजना में है, ताकि एकजुटता का प्रदर्शन किया जा सके।
यह चुनाव महज औपचारिकता नहीं है। उपराष्ट्रपति, राज्यसभा के सभापति होने के नाते, बिलों पर चर्चा कैसे चलेगी, व्यवधान के वक्त कैसे संतुलन बनेगा, और विपक्ष-सरकार के बीच किन नियमों के तहत संवाद आगे बढ़ेगा—इन सबका टोन सेट करते हैं। पिछले कुछ वर्षों में कई अहम क्षण ऐसे रहे जब चेयर की सख्ती, लचीलेपन और प्रक्रियागत निर्णयों ने नतीजों को प्रभावित किया। इसलिए सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों, इस पद को संस्थागत शक्ति के रूप में देखते हैं।
रेड्डी को उम्मीदवार बनाकर INDIA गठबंधन ने कुछ सिग्नल साफ दिए हैं। पहला—यह लड़ाई व्यक्तियों से ज्यादा संस्थानों की है। दूसरा—दक्षिण भारत के क्षेत्रीय दलों के साथ संवाद बढ़ाने की कोशिश है, जहां रेड्डी की स्वीकार्यता हो सकती है। तीसरा—न्यायपालिका से आने वाले चेहरे पर भरोसा, जो संविधान और मौलिक अधिकारों के सवालों पर स्पष्ट रुख रखता हो।
NDA का प्रत्युत्तर राजनीतिक अनुभव और संगठनात्मक ताकत पर आधारित है। CP राधाकृष्णन का प्रोफाइल दक्षिण भारत की सियासत, भाजपा की संगठनात्मक जड़ों और संसदीय कार्यअनुभव को जोड़ता है। सत्ता पक्ष को भरोसा है कि उनकी नंबर मैनेजमेंट और सहयोगी दलों का समर्थन निर्णायक रहेगा।
इधर विपक्ष का गणित तटस्थ दलों की तरफ देख रहा है। BRS, YSRCP और TDP जैसे दल अक्सर राष्ट्रीय मुद्दों पर अपनी-अपनी प्रादेशिक प्राथमिकताओं के आधार पर निर्णय लेते हैं। रेड्डी का अतीत TDP नेतृत्व के निकट रहा है—यही वजह है कि विपक्ष इस 'पुराने भरोसे' को आज की रणनीति में बदलना चाहता है। लेकिन अंतिम फैसला वही होगा जो मौजूदा राजनीतिक समीकरण और राज्यों के हितों से मेल खाए।
उपराष्ट्रपति पद के हाल के चेहरे भी संदर्भ बनाते हैं—जगदीप धनखड़ एक वरिष्ठ वकील और राज्यपाल रहे, उनसे पहले वेंकैया नायडू लंबे समय तक सक्रिय राजनीति में थे, जबकि हामिद अंसारी कूटनीतिज्ञ पृष्ठभूमि के साथ आए। यानी इस पद पर कभी राजनीतिक, कभी कूटनीतिक, तो कभी न्यायिक-वैधानिक अनुभव वांछनीय माना गया है। रेड्डी की उम्मीदवारी उसी ट्रेंड का एक नया अध्याय है, जिसमें बिलकुल कोर्टरूम से सीधे संसदीय चेयर तक पहुंचने की संभावना बनती है।
अगले तीन हफ्ते लॉबिंग, संदेश प्रबंधन और सार्वजनिक नैरेटिव की लड़ाई में गुजरेंगे। विपक्ष रेड्डी की साख और संविधान-निष्ठा को उभारना चाहता है, जबकि NDA यह दिखाएगा कि सदन चलाने के लिए राजनीतिक समझ और ठोस बहुमत जरूरी है। कौन-सा नैरेटिव सांसदों को ज्यादा भरोसेमंद लगता है, यह 9 सितंबर को मतपेटी तय करेगी।
मुख्य बिंदु एक नजर में:
मौजूदा तस्वीर यही कहती है कि यह चुनाव केवल दो नामों के बीच नहीं, दो दृष्टिकोणों के बीच है—एक जो न्यायिक अनुभव के सहारे संस्थागत संतुलन का दावा करता है, और दूसरा जो राजनीतिक अनुभव और गठबंधन की गणित पर भरोसा जताता है। अब गेंद सांसदों के पाले में है।
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