जब हम भारत की प्राचीन दार्शनिक परंपराओं की बात करते हैं, तो अक्सर वेद, उपनिषद या बौद्ध विचारों को याद करते हैं। लेकिन एक ऐसी सोच भी रही है जो ईश्वर के अस्तित्व को ही सवाल करती थी – निरंकारि संप्रदाय। इसे सरल शब्दों में "ईश्वर‑हीन" दर्शन कहा जा सकता है। इस लेख में हम जानेंगे कि यह संप्रदाय कहाँ से आया, इसके मुख्य विचार क्या हैं और आज हमारे जीवन में इसका क्या रोल हो सकता है।
निरंकारी सोच का सबसे पुराना उल्लेख प्राचीन ग्रन्थ चरवाक में मिलता है, जो 6वीं सदी ईसा पूर्व तक जाता है। चरवाक ने सभी अलौकिक बातों को अस्वीकार करके केवल प्रत्यक्ष अनुभव और तर्क पर भरोसा किया। उनका मानना था कि ज्ञान सिर्फ वही हो सकता है जिसे हम देख या छू सकें। इस विचारधारा के बाद में कई अन्य दार्शनिक भी आए – जैसे माणिक, बौद्ध युग की “निराकरण” शैली, लेकिन सभी का मूल सन्देश समान रहा: बिना सबूत के किसी भी चीज़ को मानने से बचना।
आधुनिक समय में निरंकारी विचारों को अक्सर विज्ञान‑समर्थक लेखकों और सामाजिक सुधारकों ने आगे बढ़ाया। वे कहते हैं कि धार्मिक आस्थाओं की बजाय शिक्षा, स्वास्थ्य और आर्थिक विकास पर ध्यान देना चाहिए। यही कारण है कि आज भी कई विश्वविद्यालयी पाठ्यक्रमों में "निरंकारि दर्शन" एक विषय के रूप में पढ़ाया जाता है।
1. अनुभव ही प्रमाण: निरंकारी मानते हैं कि केवल वही बात सत्य मानी जाए जो प्रत्यक्ष अनुभव या प्रयोग से साबित हो। अगर कोई दावे का समर्थन नहीं कर सकता, तो वह अस्वीकार किया जाता है।
2. प्रकृति के नियम: ब्रह्मांड को प्राकृतिक कारणों से समझाया जा सकता है – जैसे गुरुत्वाकर्षण, जलवायु परिवर्तन आदि। अलौकिक शक्ति की आवश्यकता नहीं पड़ती।
3. नैतिकता स्वतंत्र है: सही‑गलत का मूलधर्म धर्म में नहीं बल्कि मानव समाज के सहयोग और सहिष्णुता से बनता है। इसलिए सामाजिक नियम, कानून और परस्पर समझौते ही नैतिक दिशा देते हैं।
4. आलोचना को स्वागत: निरंकारी विचारकों ने हमेशा सवाल पूछने की हिम्मत रखी। उनका मानना था कि हर सिद्धांत को लगातार जांचा‑परखा जाना चाहिए, चाहे वह विज्ञान हो या धर्म।
हम आज एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ वैज्ञानिक खोजें तेज़ी से बढ़ रही हैं और सामाजिक समस्याएँ भी जटिल हैं। इस परिस्थिति में निरंकारी सोच हमें दो चीज़ें देती है – पहला, तथ्यों पर आधारित निर्णय लेने की क्षमता; दूसरा, बिना किसी पूर्वधारणा के नई विचारों को अपनाने का खुला मन।
उदाहरण के तौर पर जब सरकार ने स्वच्छ भारत मिशन शुरू किया, तो कई लोग धार्मिक कारणों से जल शुद्धिकरण को अनदेखा कर रहे थे। निरंकारी दृष्टिकोण ने उन्हें वैज्ञानिक लाभ दिखाया और अंत में बड़ी सफलता मिली। इसी तरह, शिक्षा नीति में भी "आधारभूत ज्ञान" पर ज़ोर देना निरंकारी सिद्धांत का ही परिणाम है – कि सीखना सिर्फ रिवाज़ नहीं, बल्कि वास्तविक जरूरतों को पूरा करने वाला होना चाहिए।
यदि आप अपने बच्चों को सच्ची समझ और आत्मविश्वास देना चाहते हैं, तो उन्हें यह सिखाएँ कि सवाल पूछना ठीक है, चाहे वह धर्म या विज्ञान से जुड़ा हो। इस तरह की सोच न सिर्फ व्यक्तिगत विकास में मदद करती है बल्कि समाज को भी अधिक प्रगति‑उन्मुख बनाती है।
संक्षेप में कहा जाए तो निरंकारी संप्रदाय केवल "ईश्वर नहीं" कहने का नाम नहीं, बल्कि एक ऐसी जीवनशैली है जो अनुभव, तर्क और सामाजिक जिम्मेदारी पर आधारित है। इस विचारधारा को अपनाकर हम अधिक स्पष्ट, न्यायसंगत और भविष्य‑उन्मुख भारत बना सकते हैं।
28 मई 2018 को उत्तर प्रदेश के हाथरस में बाबा हरदेव सिंह के काफिले के बाद भगदड़ मच गई, जिसमें चार लोगों की मौत हो गई। प्रशासन द्वारा प्रदान की गई पानी और छाया की व्यवस्थाएँ अपर्याप्त साबित हुईं। घटना ने आयोजन के प्रबंधन और अधिकारियों की तत्परता पर सवाल उठाए हैं।
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