जब मानसून वापसी, वर्षा ऋतु का पुनः आगमन, जब बादल फिर से धरती को जल से भरते हैं. Also known as बारिश का सीज़न शुरू होता है, तो कई असर सामने आते हैं। सबसे पहले भारी बारिश, अधिक मात्रा में वर्षा जो अक्सर सतही जल को सराबोर कर देती है आती है, जिससे भूस्खलन, भारी बारिश के बाद पहाड़ी क्षेत्रों में मिट्टी का टकराव और जल आपदा, बाढ़, जलभवन और जल स्तर में असामान्य उछाल के जोखिम बढ़ते हैं। यह त्रिकोण – मानसून, बारिश, आपदा – एक दूसरे को सक्रिय करता है, इसलिए इनकी समझ जरूरी है।
मानसून वापसी का सीधा प्रभाव जलवायु परिवर्तन से भी जुड़ा हुआ है। जलवायु परिवर्तन मानसून की तीव्रता को बढ़ाता है, जिससे बारिश के पैटर्न बदलते हैं और अचानक झटके वाले तूफ़ान आते हैं। इस संबंध को हम "जलवायु परिवर्तन प्रभावित मानसून" के रूप में कहते हैं। जब जलवायु परिवर्तन के कारण हवा की दिशा बदलती है, तो बारिश का क्षेत्र विस्तारित हो जाता है और पहले नहीं देखी गई जगहों पर भी बाढ़ आ सकती है। इसका मतलब है कि अब केवल तटीय शहर ही नहीं, भीतरी जिले भी भारी पानी की समस्या से जूझ सकते हैं।
एक और महत्वपूर्ण घटक है "मौसम चेतावनी" प्रणाली। मौसम विभाग जब अलर्ट, सरकारी या प्रादेशिक स्तर पर जारी की गई गंभीर मौसम चेतावनी जारी करता है, तो स्थानीय प्रशासन को समय पर जल निकासी, राहत कार्य और आपदा प्रबंधन की तैयारी करनी होती है। अलर्ट की सही समय पर सूचना जमीनी स्तर पर प्रभावी बचाव को सुनिश्चित करती है। अधिकतर खबरें, जैसे कि मुंबई की 791 मिमी बारिश और उत्तरी बंगाल में 100 से अधिक भूस्खलन, अलर्ट सिस्टम की भागीदारी से बचाव कार्य में सुधार देखा गया।
मानसून वापसी के साथ तीन प्रमुख संकेतक होते हैं: सतही जल स्तर का उछाल, नदी प्रवाह की गति, और जलभवन में जल का स्तर। इन संकेतकों को मॉनिटर करने से संभावित बाढ़ क्षेत्रों की पहचान आसान होती है। उदाहरण के तौर पर, अगर नदी का स्तर अपने सामान्य स्तर से 30% ज्यादा है, तो आस-पास के गांवों को तुरंत खाली करना चाहिए। इससे न केवल जीवित ही नहीं, बल्कि पशुधन और फसलों की रक्षा भी होती है।
भारी बारिश के बाद अक्सर दुर्लभ लेकिन गंभीर घटना "भूस्खलन" होती है। जब पहाड़ी क्षेत्रों में बहुत सारी बारिश आती है, तो मिट्टी की स्थिरता टूटती है। यह न सिर्फ निचले क्षेत्रों में बाढ़ को बढ़ाता है, बल्कि पहाड़ी रास्तों को भी बंद कर देता है, जिससे राहत कार्य में देरी होती है। इसलिए, भूस्खलन जोखिम वाले क्षेत्रों में पूर्व चेतावनी योजना बनाना बेहद ज़रूरी है।
जल आपदा से बचाव के लिए समुदाय स्तर पर जागरूकता जरूरी है। स्कूल, पंचायत और स्थानीय NGOs मिलकर आपातकालीन योजना तैयार कर सकते हैं। ऐसी योजना में प्राथमिक चिकित्सा किट, आपातकालीन फ़ोन नंबर और निकासी मार्ग शामिल होने चाहिए। जब मानसून वापसी की खबर आती है, तो इन तैयारियों की समीक्षा करके ही आगे बढ़ना चाहिए।
इन सब बातों को देखते हुए, हमारे पास इस टैग पेज पर कई लेख एकत्रित हैं जो मानसून, भारी बारिश, भूस्खलन और जल आपदा के विभिन्न पहलुओं को कवर करते हैं। आप आगे पढ़ेंगे तो पता चलेगा कि कैसे सरकार, वैज्ञानिक और आम लोग इस मौसम को समझकर तैयारी कर रहे हैं। अब नीचे दी गई सूची में आप इन विषयों पर विस्तृत रिपोर्ट, ताज़ा आँकड़े और विशेषज्ञों की राय पाएँगे।
भारत मौसम विज्ञान विभाग ने 2 अक्टूबर को दक्षिण छत्तीसगढ़ पर भारी वर्षा अलर्ट जारी किया; गहरे depressi से बस्तर में बाढ़ की आशंका, मानसून की वापसी से कई उत्तर राज्यों में बारिश घटेगी.
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