Bougainvillea OTT रिलीज: Fahadh Faasil वाली साइकोलॉजिकल थ्रिलर अब SonyLIV पर

Bougainvillea OTT रिलीज: Fahadh Faasil वाली साइकोलॉजिकल थ्रिलर अब SonyLIV पर

ओटीटी पर आ गई ‘Bougainvillea’: दो महीने में थिएटर से स्क्रीन तक, क्यों देखनी चाहिए यह थ्रिलर

मलयालम सिनेमा की चर्चा में रहने वाली साइकोलॉजिकल थ्रिलर ‘Bougainvillea’ अब घर बैठे देखने के लिए उपलब्ध है. 17 अक्टूबर 2024 को थिएटर में रिलीज हुई यह फिल्म 13 दिसंबर 2024 से SonyLIV पर स्ट्रीम कर रही है. करीब दो महीने की विंडो में ओटीटी आना बताता है कि मेकर्स ने थिएटर रन के बाद डिजिटल दर्शकों को तुरंत टारगेट किया. प्लेटफॉर्म ने सोशल मीडिया पर टैगलाइन के साथ घोषणा की—“Every petal tells a story. Every twist leaves you guessing.”

फिल्म का निर्देशन अमल नीरद ने किया है, जो ‘Iyobinte Pusthakam’ और ‘Varathan’ जैसे स्टाइलिश थ्रिलर्स के लिए जाने जाते हैं. ‘Bougainvillea’ की कहानी लाजो जोस के 2019 के उपन्यास ‘Ruthinte Lokam’ से प्रेरित है. स्क्रिप्ट भी अमल और लाजो जोस ने मिलकर लिखी है, और प्रोडक्शन अमल नीरद प्रोडक्शंस व उदय पिक्चर्स का है. 2 घंटे 18 मिनट की रनटाइम वाली यह फिल्म तकनीकी तौर पर मजबूत टीम के साथ आई—कैमरा संभाला अनेन्द सी. चंद्रन ने, एडिटिंग विवेक हर्षन की है और म्यूज़िक सुशिन श्याम का.

कास्ट इसकी सबसे बड़ी ताकत है. फहद फ़ासिल यहां अपने सिग्नेचर इंटेंसिटी के साथ नजर आते हैं. कुंचाको बोबन का स्क्रीन प्रेज़ेंस कहानी को बैलेंस करता है. और सबसे खास—ज्योतिर्मयी 11 साल बाद सिल्वर स्क्रीन पर वापस लौटी हैं. सपोर्टिंग कास्ट में वीणा नंदकुमार, स्रिंदा और शरफ यू. दीन अपने हिस्से का असर छोड़ते हैं. थिएट्रिकल रन के दौरान रिव्यूज़ मिक्स्ड रहे, लेकिन बॉक्स ऑफिस पर फिल्म ने कमर्शियल सक्सेस दिखाई. IMDb पर इसे 3500 से ज्यादा यूजर्स ने रेट किया है और औसत 6.4/10 है.

रिलीज के बीच एक विवाद भी सामने आया. प्रमोशनल सॉन्ग ‘Sthuthi’ पर सायरो-मलबार सभा अलमाया के सेक्रेटरी टोनी चिट्टिलप्पिली ने शिकायत दी कि गाने के शब्द ईसाई मान्यताओं को विकृत करते हैं. मेकर्स की ओर से औपचारिक सफाई की विस्तृत जानकारी सार्वजनिक नहीं हुई, लेकिन शिकायत ने रिलीज सप्ताह में चर्चा जरूर बढ़ाई.

ओटीटी शेड्यूलिंग की बात करें तो मलयालम फिल्मों के लिए 6–8 हफ्तों का डिजिटल विंडो अब आम होता जा रहा है. जिन फिल्मों को थिएटर में अच्छी ऑक्यूपेंसी मिलती है, वे ओटीटी पर दूसरी लाइफ हासिल करती हैं—खासकर थ्रिलर और मिस्ट्री जॉनर, जिन्हें दर्शक घर पर फोकस के साथ देखना पसंद करते हैं. ‘Bougainvillea’ उसी ट्रेंड में फिट बैठती है.

कहानी, ट्रीटमेंट और रिसेप्शन: मेमोरी, पहचान और हिंसा का जाल

कहानी की बुनियाद मनोवैज्ञानिक उलझनों पर टिकी है. डॉ. रॉयस थॉमस, उनकी पत्नी रीथू और उनके बच्चे—ऊपरी तौर पर यह एक साधारण परिवार का सेटअप है. लेकिन सालों पहले हुए एक हादसे के बाद रीथू को मेमोरी लॉस हो गया. परिवार ने इस कमी के साथ जीना सीख लिया है, पर कभी-कभी उसकी याददाश्त में उभरती दरारें डर पैदा करती हैं. इसी बीच शहर में महिलाएं गायब होने लगती हैं और पुलिस की सूई शक के तौर पर रीथू की तरफ घूम जाती है.

यहीं से फिल्म थ्रिलर मोड में तेज हो जाती है. जांच आगे बढ़ती है, पुराने राज खुलने लगते हैं और रीथू की टूटी-बिखरी यादें कहानी का सबसे अहम क्लू बन जाती हैं. पटकथा दर्शक को बार-बार इस सवाल पर लौटाती है—क्या हम अपनी यादों पर भरोसा कर सकते हैं? या दिमाग हमें वही दिखाता है, जो हम देखना चाहते हैं? स्लैशर एलिमेंट्स के साथ फिल्म मनोविज्ञान, अपराध और रिश्तों की सीमाओं पर चलती है.

अमल नीरद का विजुअल स्टाइल यहां भी साफ दिखता है—लो-लाइट फ्रेम्स, सधी हुई कैमरा मूवमेंट और क्लोज-अप्स जो किरदारों की बेचैनी पकड़ते हैं. अनेन्द सी. चंद्रन की सिनेमैटोग्राफी रात और छायाओं को कहानी का हिस्सा बना देती है. विवेक हर्षन की एडिटिंग कई जगह टाइट है, खास तौर पर इन्वेस्टिगेशन वाले हिस्सों में, हालांकि इंटरवल के आसपास और क्लाइमेक्स से पहले दो-एक अनुक्रम लंबे महसूस हो सकते हैं. सुशिन श्याम का बैकग्राउंड स्कोर तनाव को धीरे-धीरे बढ़ाता है—लाउड जंप स्केयर्स पर निर्भर रहने के बजाय यह बेचैनी को अंदर तक उतारता है.

परफॉर्मेंसेज़ की बात करें तो फहद फ़ासिल इमोशनल ग्रे एरिया में सहज हैं. वे हर फ्रेम में कहानी का वजन ढोते दिखते हैं. कुंचाको बोबन यहां एक ऐसे किरदार में हैं जो नैतिक दुविधाओं में फंसा रहता है; उनका संयम फिल्म को रियल टच देता है. ज्योतिर्मयी के हिस्से में सबसे मुश्किल ट्रैक है—मेमोरी गैप्स के बीच अपराध-संदेह का दबाव. उनकी स्क्रीन पर वापसी प्रभावशाली है; कई सीन्स में वही कहानी की धुरी बन जाती हैं.

स्क्रीनप्ले ताकतवर आइडिया पर खड़ा है—मेमोरी, पहचान और अपराध का त्रिकोण. हां, कुछ दर्शकों को स्लैशर हिस्सों की ग्राफिक डिटेल असहज कर सकती है. और जो लोग बेहद तंग-धागे जैसी मिस्ट्री की उम्मीद करते हैं, उन्हें कुछ ट्विस्ट अनुमानित लग सकते हैं. इसी वजह से थिएटर में रिव्यूज़ बंटे रहे—किसी ने क्राफ्ट और परफॉर्मेंस की तारीफ की, तो किसी ने नैरेटिव पेसिंग और कुछ जस्टिफिकेशंस पर सवाल उठाए. इसके बावजूद बॉक्स ऑफिस पर कदम टिके रहे, जो बताता है कि थ्रिलर ऑडियंस ने इसे अपनाया.

एडाप्टेशन के स्तर पर एक दिलचस्प बात यह है कि उपन्यास की आंतरिक दुनिया—जहां किरदार अपने ही दिमाग में कैद होते हैं—को फिल्म ने विजुअल्स और साउंड डिजाइन से पेश करने की कोशिश की. कुछ फ्लैशबैक और ड्रीम-लाइक फ्रेम्स इसी प्रयोग का हिस्सा हैं. यह ट्रीटमेंट कहानी को सीधा-सरल क्राइम ड्रामा बनने से रोकता है और इसे एक मनोवैज्ञानिक केस स्टडी में बदल देता है.

रिलीज के आसपास हुए ‘Sthuthi’ सॉन्ग विवाद ने एक बार फिर यह सवाल उभारा कि धार्मिक प्रतीकों का इस्तेमाल पॉप कल्चर में कैसे और कितना होना चाहिए. शिकायत करने वालों ने इसे आस्थाओं के साथ खिलवाड़ बताया; फिल्म की क्रिएटिव टीम की आधिकारिक प्रतिक्रिया विस्तृत तौर पर सामने नहीं आई, लेकिन मलयालम इंडस्ट्री में इस तरह की बहस नई नहीं है—क्रिएटिव फ्रीडम और सेंस्टिविटी के बीच बैलेंस हर बार परीक्षा लेता है.

ओटीटी व्यूइंग के लिए यह फिल्म क्यों काम करती है? क्योंकि इसकी इंटेंसिटी घर के माहौल में, बिना बाधा, ज्यादा असर करती है. साथ ही, कहानी में छोटे-छोटे हिंट्स हैं जिन्हें थिएटर में मिस करना आसान होता है; ओटीटी पर दर्शक पॉज़-रीवाइंड से इन्हें पकड़ लेते हैं. 138 मिनट की रनटाइम बिंज-वॉचिंग के लिए ठीक बैठती है—न न बहुत लंबी, न हड़बड़ी वाली.

अगर आप यह तय कर रहे हैं कि देखनी है या नहीं, तो एक छोटी गाइड:

  • जरूर देखें, अगर आपको कैरेक्टर-ड्रिवन थ्रिलर्स, मनोवैज्ञानिक उलझनें और स्लो-बर्न टेंशन पसंद है.
  • फहद फ़ासिल, कुंचाको बोबन या अमल नीरद के काम के फैन हैं—तो यह सहयोग आपको निराश नहीं करेगा.
  • अगर आप ग्राफिक हिंसा या स्लैशर एलिमेंट्स से असहज होते हैं, तो यह आपके लिए मुश्किल हो सकती है.
  • डिटेल-ओरिएंटेड मिस्ट्री चाहते हैं, जहां हर ट्विस्ट चौंकाए—तो यहां कुछ मोड़ आपको अनुमानित लग सकते हैं.

मलयालम सिनेमा ने पिछले दशक में ‘Memories’, ‘Nayattu’, ‘Anjaam Pathiraa’ और ‘Joji’ जैसी फिल्मों से थ्रिलर स्पेस में अलग पहचान बनाई है. ‘Bougainvillea’ उसी परंपरा की एक और कोशिश है—जहां क्राइम कहानी का दरवाज़ा है, लेकिन असली कमरा मनोविज्ञान का है. ओटीटी पर आने के बाद इसकी पहुंच अब भाषा की सीमाएं पार करेगी; सबटाइटल्स के सहारे नॉन-मलयालम ऑडियंस भी इसे खोजेंगे.

तकनीकी क्रेडिट्स का असर अंत तक बना रहता है. कुछ सीन्स में बैकग्राउंड स्कोर और साउंड डिजाइन आपको किरदार की हालत के करीब ले जाते हैं. कैमरा बिना शोर किए डर और सस्पेंस को फ्रेम करता है. एडिटिंग के चलते कहानी बार-बार अपने केंद्र—रीथू की यादों—पर लौट आती है. यही फोकस ‘Bougainvillea’ को भीड़ में अलग बनाता है.

अगर आपने थिएटर में मिस कर दी थी, तो अब समय है. प्लेटफॉर्म पर उपलब्ध यह रिलीज उन दर्शकों के लिए है जो तेजी से बदलते दृश्य, शोर-शराबे वाले जंप स्केयर्स के बजाय शांत, बेचैन कर देने वाली थ्रिलर देखना चाहते हैं. और हां, ज्योतिर्मयी की वापसी—यह अपने आप में देखने की एक ठोस वजह है.

टिप्पणि

  • Himanshu Kaushik
    Himanshu Kaushik

    ये फिल्म तो बस एक घर की चुप्पी में छिपी हुई आवाज़ है। फहद फ़ासिल का हर नज़र दिल को छू जाता है। ज्योतिर्मयी वापसी से तो आँखें भर आईं। ओटीटी पर देखने का मौका बहुत अच्छा है।

  • Sri Satmotors
    Sri Satmotors

    इतनी सुंदर कहानी घर पर शांति से देखने का मजा ही कुछ और है। ❤️

  • Sohan Chouhan
    Sohan Chouhan

    अरे ये फिल्म तो बस एक धीमी चलती बस है जिसमें कोई बात नहीं। फहद फ़ासिल तो हमेशा ऐसा ही करता है, बोरिंग एक्टिंग। और ये सब लोग इसे आर्ट होने का दावा करते हैं? बस लोगों को धोखा दे रहे हो।

  • SHIKHAR SHRESTH
    SHIKHAR SHRESTH

    मैंने इसे देख लिया है। सिनेमैटोग्राफी बेहतरीन है। अनेन्द सी. चंद्रन ने जो लाइटिंग की है, वो बिल्कुल फिल्म के टोन के साथ मेल खाती है। और सुशिन श्याम का साउंड डिजाइन... वो तो दिमाग के अंदर घुस जाता है।

  • amit parandkar
    amit parandkar

    क्या आपने ध्यान दिया कि फिल्म में जो बगैनविलिया फूल दिखाए गए हैं... वो असल में किसी निश्चित धार्मिक रीति का प्रतीक हैं? मैंने एक वीडियो देखा था जिसमें कहा गया था कि ये फूल ईसाई संस्कृति में माँ के दर्द का प्रतीक हैं... और वो गाना तो बिल्कुल उसे तोड़ रहा था। ये सब जानबूझकर किया गया है।

  • Annu Kumari
    Annu Kumari

    मुझे लगता है कि ये फिल्म बहुत अच्छी है... बस थोड़ा धीमी है। लेकिन जिन्हें असली मनोवैज्ञानिक थ्रिलर चाहिए, वो इसे प्यार से देखेंगे। ज्योतिर्मयी का अभिनय तो दिल को छू गया।

  • venkatesh nagarajan
    venkatesh nagarajan

    यादें... पहचान... हिंसा... ये तीनों एक ही धागे में बुने गए हैं। फिल्म ने सिर्फ एक कहानी नहीं बताई, बल्कि एक सवाल उठाया-क्या हम अपने दिमाग पर भरोसा कर सकते हैं? ये सवाल अभी भी मेरे दिमाग में गूंज रहा है।

  • Drishti Sikdar
    Drishti Sikdar

    मुझे लगता है कि फिल्म में बहुत सारे ट्विस्ट थे जिन्हें आप नहीं देख पाए। मैंने तीन बार देखा और हर बार कुछ नया मिला। तुम लोग तो बस एक बार देखकर निर्णय ले रहे हो।

  • indra group
    indra group

    हे भगवान! ये सब बकवास है। हमारी संस्कृति को फूलों के नाम से निशाना बनाया जा रहा है? और फहद फ़ासिल को आर्ट हाउस बुद्धिजीवी बना दिया गया है? हमारे यहाँ तो असली थ्रिलर हैं-जैसे ‘Singham’ और ‘Dangal’। ये सब तो वेस्टर्न बुराई है।

  • sugandha chejara
    sugandha chejara

    अगर आप थोड़ा धैर्य रखें तो ये फिल्म आपको बहुत कुछ देगी। ज्योतिर्मयी की आँखों में जो दर्द था, वो बोल रहा था। आपको बस थोड़ा धीरे चलना होगा। ये फिल्म आपके लिए नहीं है? कोई बात नहीं, आप अपना पसंदीदा एक्शन फिल्म देखिए। 😊

  • DHARAMPREET SINGH
    DHARAMPREET SINGH

    फिल्म में नैरेटिव पेसिंग एकदम नाइटमार्स है। बहुत सारे सीन्स ऐसे हैं जो बिना किसी टेंशन के चल रहे हैं। ये थ्रिलर नहीं, बल्कि एक लंबी नींद है। और ये सब लोग इसे एक्सपेरिमेंटल कह रहे हैं? ये तो बस लेसन लेने के लिए बनाई गई है।

  • gauri pallavi
    gauri pallavi

    तो फिल्म देखी? बहुत अच्छी। अब बताओ क्या आपने उस गाने के बारे में जानकारी ली? वो जो विवाद हुआ था... शायद वो गाना बहुत ज्यादा सच था। 😏

  • Agam Dua
    Agam Dua

    ये फिल्म बिल्कुल बेकार है। ज्योतिर्मयी का अभिनय भी नहीं बना। फहद फ़ासिल का इंटेंसिटी बस एक बार देख लो और बाकी सब बोरिंग। और ये सब लोग इसे आर्ट होने का दावा करते हैं? ये तो बस एक लंबा टेड टॉक है।

  • Gaurav Pal
    Gaurav Pal

    इस फिल्म में एक बात बहुत अच्छी है-ये फिल्म आपको बोलने नहीं देती। आप बस बैठे रहते हैं और सोचते रहते हैं। ये वो फिल्म है जो आपको अपने अंदर घुल जाती है। और फहद फ़ासिल? वो तो अपने आप में एक लैंडस्केप है।

  • sreekanth akula
    sreekanth akula

    क्या आपने ध्यान दिया कि फिल्म के अंत में जब रीथू अपने बच्चे को गले लगाती है, तो कैमरा उसके हाथ के निशान पर जाता है? वो निशान उसकी यादों का प्रतीक है। ये छोटा सा डिटेल बहुत गहरा है।

  • Sarvesh Kumar
    Sarvesh Kumar

    ये फिल्म क्या है? एक बॉलीवुड की नकल? इतनी धीमी फिल्म को आर्ट कहना बहुत बड़ा झूठ है। हमारे देश में ऐसी फिल्मों को नहीं चलाना चाहिए। हमें तो एक्शन चाहिए।

  • Ashish Chopade
    Ashish Chopade

    Bougainvillea की ओटीटी रिलीज एक ऐतिहासिक क्षण है। यह फिल्म भारतीय सिनेमा के नवीनतम युग का प्रतीक है। अमल नीरद का निर्देशन और फहद फ़ासिल का अभिनय वैश्विक स्तर पर प्रशंसा के योग्य हैं।

  • Shantanu Garg
    Shantanu Garg

    मैंने देखा। अच्छी फिल्म है। बस थोड़ा धीमी है। लेकिन अगर आप इसे धीरे से देखें तो बहुत कुछ मिल जाएगा।

  • Vikrant Pande
    Vikrant Pande

    अरे ये फिल्म तो बस एक बुद्धिजीवी लोगों के लिए है। जिन्हें बोर होना पसंद है। फहद फ़ासिल के अभिनय को आर्ट कहना बहुत बड़ा झूठ है। ये तो बस एक लंबा स्टैंडअप कॉमेडी है जिसमें कोई हंस नहीं रहा।

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