भारी अमेरिकी टैरिफ खबर से भारतीय शेयर बाजार में हफ्ते का छठा निरंतर गिरावट

भारी अमेरिकी टैरिफ खबर से भारतीय शेयर बाजार में हफ्ते का छठा निरंतर गिरावट

अमेरिकी टैरिफ का साइड‑एफ़ेक्ट: फार्मा और आईटी सैक्टर्स में अचानक गिरावट

शनिवार, 26 सितंबर 2025 को भारतीय स्टॉक एक्सचेंजेज़ ने फिर एक निचली लहर देखी। सेंसेक्स 733 अंक गिरकर 80,426.46 पर बंद हुआ, जबकि निफ्टी 236 अंक घटकर 24,654.70 पर समाप्त हुआ। दो प्रमुख बेंचमार्क इंडेक्स लगातार छः दिनों तक नीचे की दिशा में रहे, जिससे बाजार में बेचने की लहर तेज़ हो गई।

बाजार के सबसे बड़े गिरावट के कारण स्पष्ट थे – अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प ने भारत से आयातित ब्रांडेड व पेटेंटेड दवाओं पर 100% टैरिफ लगाने की घोषणा की। इस कदम ने न केवल फार्मा सेक्टर में बड़ा झटका दिया, बल्कि आईटी कंपनियों को भी चिंतित कर दिया, जो अमेरिका के बड़े टेक ग्राहकों पर काफी हद तक निर्भर हैं।

भारतीय शेयर बाजार की इस नयी गिरावट के पीछे दो प्रमुख कारणों को विशेषज्ञों ने उजागर किया – टैरिफ के कारण निर्यात क्षति का डर और अकवनचर रिपोर्ट में आईटी डिमांड की धीमी पुनरुत्थान संकेत।

फार्मा इंडेक्स की धड़कन: 2.7% का तेज़ गिरना

निफ्टी फॉर्मा इंडेक्स ने 590 अंक (2.7%) की भारी गिरावट दर्ज की, जब कि 20 में से 17 स्टॉक्स ने लाल रंग दिखाया। लौरस लैब्स, बायोकॉन, ज़ायडस लाइफ़ साइंसेस और नैटको फॉर्मा जैसी प्रमुख दवा कंपनियों ने 5% से 7% तक का नुकसान झेला।

2025 के वित्तीय वर्ष में भारत के फार्मा निर्यात में 20% की सालाना बढ़ोतरी के साथ लगभग $10.5 बिलियन की आय हुई थी। यदि टैरिफ लागू हुआ तो इस आय पर सीधे असर पड़ सकता है, जिससे निर्यात के मौजूदा प्रवाह में बाधा उत्पन्न होगी। इस कारण निवेशकों ने तुरंत लिक्विडेट करना शुरू कर दिया, जिससे इंडेक्स में जल्दबाज गिरावट आई।

आईटी सेक्टर में भी टेंशन: 2‑2.5% की रोकथाम

आईटी इंडेक्स ने भी 2%‑2.5% की गिरावट दर्ज की। टेक महिंद्रा 3.11% की सबसे बड़ी गिरावट के साथ ऊँची गिरावट वाले शेयरों में रहा। इस गिराव के पीछे दो मुख्य कारण थे: ट्रम्प की टैरिफ नीति के संभावित प्रभाव को लेकर वैश्विक ग्राहकों की चिंता, और अक्वेंट्र की ताज़ा कसौटियों से पता चला डिमांड की अनिश्चित पुनःस्थापना।

आइटी क्षेत्रों में निर्यात वस्तु रूप में सेवाएं व सॉफ्टवेयर बड़े पैमाने पर अमेरिकी कंपनियों को प्रदान की जाती हैं, इसलिए टैरिफ परिप्रेक्ष्य से अप्रत्यक्ष दबाव बढ़ रहा है। इस कारण बाजार में बेचने की लहर तेज़ी से चल पड़ी।

भारी बेचने का दायरा: मिडकैप और स्मॉलकैप में भी गिरावट

निफ्टी 50 के साथ ही मिडकैप 100 इंडेक्स 2.05% और स्मॉलकैप 100 इंडेक्स 2.26% तक गिरा। कुल मिलाकर 459 स्टॉक्स लाल में बंद हुए, जिससे बाजार में बियर की शक्ति स्पष्ट हुई। छोटे और मध्यम कंपनियों में विदेशी फंड्स की निकासी स्पष्ट थी, जिससे रियल एस्टेट, ऊर्जा और उपभोक्ता स्टॉक्स भी नीचे की ओर धकेले गए।

तकनीकी संकेतक: आगे और गिरावट की सम्भावना

निफ्टी ने 61.8% फिबोनाचि रिट्रेसमेंट 24,807 और 100‑दिन EMA 24,747 को तोड़ दिया। दैनिक चार्ट पर बड़ा बियरिश कैंडल बना, जिससे त्वरित बिक्री की पुष्टि हुई। RSI 40 के नीचे और ADX में बेचने की ताक़त का संकेत मिला, जो आगे की गिरावट के खतरे को संकेत करता है।

एनालिस्ट अब 24,450‑24,500 के स्तर को प्रमुख सपोर्ट के रूप में देख रहे हैं। यदि यह स्तर टूटता है तो 24,200 तक गिरावट की संभावना बढ़ जाती है। उल्टी दिशा में 24,850‑24,900 को रेजिस्टेंस माना जा रहा है।

रुपया और विदेशी निकासी: निरंतर दबाव

रुपया 88.70 के रिकॉर्ड‑नज़दीक स्तर पर टिके रहने के बावजूद, USD की कमजोरी के बावजूद विदेशी फंड निकासी जारी रही। विदेशी निवेशकों ने जोखिम कम करने के लिए भारतीय बैंकों के फिक्स्ड डिपॉज़िट और गोल्ड के बाजार में रुख किया। इससे रोक‑लोफिंग की दर बढ़ी और शेयर बाजार में और भी अधिक बेचने का माहौल बना।

सुरक्षा की तलाश में सोना‑चांदी की बुलियन ऑर्डर: निवेशकों का शरणस्थल

स्टॉक मार्केट की अस्थिरता के बीच, घरेलू बुलियन ट्रेडिंग ने सोना‑चांदी के तरफ तेज़ी से रुख किया। 2025 में सोने की कीमत में 47% और चांदी में 58% की तीव्र वृद्धि दर्ज हुई। शांति की तलाश में निवेशकों ने धातुओं में सुरक्षित निवेश को प्राथमिकता दी, जिससे इस सेक्टर में ट्रेडिंग वॉल्यूम में असाधारण बढ़ोतरी हुई।

वैश्विक संदर्भ: एशिया के बाजारों में भी जोखिम‑ऑफ मूड

एशिया के प्रमुख सूचकांकों ने भी निचले रुझान दिखाए। जापान के निक्केई में 0.9% की गिरावट और हांगकांग के हैंग सेंग में भी बताया गया कि जोखिम‑ऑफ भावना बाजार में फैली हुई है। यह अंतरराष्ट्रीय माहौल भी भारतीय बाजार के नीचे धकेलने में भूमिका निभा रहा है।

भविष्य की संभावनाएँ: नीति‑निर्णायकों और निवेशकों के लिए संकेत

भविष्य की संभावनाएँ: नीति‑निर्णायकों और निवेशकों के लिए संकेत

भारतीय सरकार को इस टैरिफ संकट को लेकर तेज़ी से जवाब देना होगा। फार्मा उद्योग में विविधीकरण, नई मार्केट्स की खोज और वैकल्पिक निर्यात रणनीतियों पर ध्यान देना आवश्यक है। साथ ही, आईटी कंपनियों को अमेरिकी ग्राहक बेस को विविधीकृत करने की योजना बनानी पड़ेगी, ताकि टैरिफ जोखिम कम हो सके।

निवेशकों के लिए सलाह यह होगी कि लघु‑कालिक स्विंग ट्रेडिंग से बचें, और पोर्टफोलियो में अधिक स्थायी सेक्टर जैसे FMCG, यूटिलिटीज़ और डिविडेंड‑देने वाले स्टॉक्स को शामिल करें। साथ ही, टेक्टिकल रूप से गोल्ड और सॉलिड डेब्ट इंस्ट्रूमेंट्स को बैकअप के रूप में रखें।

समग्र रूप से, अमेरिकी टैरिफ घोषणा ने भारतीय शेयर बाजार को एक नई दिशा में मोड़ दिया है। तकनीकी संकेतक और मौलिक डेटा दोनों ही इस बात की ओर इशारा कर रहे हैं कि आगे का रास्ता कठिन हो सकता है, जब तक कि नीति‑निर्माताओं और कंपनियों से अनुकूल प्रतिक्रियाएं नहीं आतीं।

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