भारत के केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का एक बयान हाल ही में राजनीतिक तूफान का कारण बन गया है। यह विवाद तब उठा जब राज्यसभा में संविधान के 75 वर्ष पूरे होने के उपलक्ष्य में हुई बहस के दौरान अमित शाह ने बाबासाहेब भीमराव आंबेडकर के बारे में कुछ ऐसा कहा, जिसने विपक्ष, विशेष रूप से कांग्रेस पार्टी में तीखी प्रतिक्रियाएं उत्पन्न कीं। शाह ने कहा कि आंबेडकर का नाम लेना अब एक ‘फैशन’ सा बन गया है, और उन्होंने इसे लेकर एक उदाहरण भी दिया कि अगर इतनी बार भगवान का नाम लिया जाता तो स्वर्ग तो जरूर मिलता।
ऐसे बयान का कांग्रेस पार्टी ने कड़ा विरोध किया है। कांग्रेस के नेताओं का कहना है कि यह सीधे-सीधे आंबेडकर की विरासत का अपमान है। विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने इस बयान पर करारा प्रहार करते हुए लिखा कि जिन लोगों का झुकाव मनुस्मृति की ओर होगा, वे स्वाभाविक रूप से आंबेडकर के विचारों से परेशान होंगे। कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खड़गे ने शाह के इस्तीफे की मांग करते हुए कहा कि आंबेडकर का अपमान करके यह सिद्ध कर दिया गया है कि भाजपा और उसके वैचारिक स्रोत आरएसएस संविधान और आंबेडकर के विचारों के खिलाफ हैं।
विवाद और भी गहराया जब कांग्रेस महासचिव के.सी. वेणुगोपाल ने शाह को आड़े हाथों लेते हुए कहा कि बाबासाहेब आंबेडकर के नाम की बात करना उनके लिए परम आत्मिक और महत्वपूर्ण है। कांग्रेस का मानना है कि शाह का यह बयान सार्वजनिक तौर पर आंबेडकर और संविधान के प्रति अनादर को दर्शाता है, जो कि भारतीय राजनीतिक और सामाजिक तानेबाने पर सवाल खड़े करता है।
उधर, भाजपा ने शाह के बयान का बचाव करते हुए कहा कि इसके पीछे कांग्रेस का पाखंड उजागर करना था। भाजपा के प्रवक्ता ने कहा कि कांग्रेस ने आंबेडकर के नाम का उपयोग तो किया लेकिन उनके वास्तविक आदर्शों का पालन कभी नहीं किया। शाह के इस बयान को तहस-नहस करने के लिए भाजपा के नेताओं ने कांग्रेस पर आरोप लगाया कि वे शाह के बयान को तोड़-मरोड़ कर पेश कर रहे हैं।
इस मामले ने भारत की राजनीति में एक नया मोड़ ले लिया है। राजनेताओं और जनता के बीच चर्चा इस बात पर बढ़ गई है कि कैसे आदर्श व्यक्तियों के नाम और विचारधारा का दुरुपयोग राजनीतिक लाभ के लिए किया जा रहा है। खासकर जब बात आंबेडकर और उनके संवैधानिक योगदान की हो, तब ये विवाद और भी गंभीर हो जाता है। इस परिप्रेक्ष्य में, शाह का बयान एक नई बहस छेड़ रहा है।
आंबेडकर का भारतीय संविधान में योगदान अनुपम और अतुलनीय है। उनका नाम आज न केवल भारत में बल्कि पूरे विश्व में संवैधानिक और सामाजिक न्याय के प्रतीक के रूप में देखा जाता है। भारत के समाज में सामाजिक समानता और अधिकारों की सुनिश्चितता के लिए आंबेडकर के प्रयासों को अद्वितीय माना जाता है। ऐसे में, उनके नाम का प्रयोग या उसकी आलोचना राजनीति के जटिलतम क्षेत्रों में उठने वाले मुद्दों में से एक है।
विश्लेषकों का मानना है कि घटनाक्रम के इस मोड़ ने राजनीतिक संवाद को एक नए स्तर पर पहुंचा दिया है। राजनीति में आंबेडकर के नाम और काम का प्रयोग अक्सर विभिन्न पक्षों द्वारा किया जाता है। लेकिन जैसे ही इस नाम का राजनीतिक उद्देश्यों के लिए इस्तमाल होता है, इसका महत्व और अर्थ बदलने लगता है, जिसे ध्यान में रखना अत्यंत आवश्यक है।
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