विपक्षी दलों ने राष्ट्र्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के प्रमुख मोहन भागवत के हालिया बयानों पर जोरदार हमला किया है। 12 अक्टूबर 2024 को अपने दशहरा संबोधन में भागवत ने हिंदू समाज को आत्मसमीक्षा करने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि बांग्लादेश में घटनाओं से यह सीख लेनी चाहिए कि जब समाज संगठित नहीं होता तब दुष्ट ताकतें अत्याचार करती हैं। उनके इस बयान ने विभिन्न राजनीतिक दलों को नाराज़ किया है।
कांग्रेस अध्यक्ष और राज्यसभा में विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा कि मोहन भागवत के बयान भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) का समर्थन करते हैं। उन्होंने कहा कि भाजपा, जो आरएसएस की मातृत्व इकाई मानी जाती है, का समाज में विभाजन और अशांति फैलाने में बड़ा हाथ है। खड़गे का आरोप है कि जहां भी भाजपा सत्ता में होती है, वहां दलितों और आदिवासियों पर अत्याचार की घटनाएं बढ़ जाती हैं।
सीपीआई के महासचिव डी. राजा का कहना है कि भागवत का वक्तव्य आरएसएस की जातिगत वर्चस्व और पितृसत्ता को बढ़ावा देने वाली विचारधारा का हिस्सा है। राजा ने याद दिलाया कि बी.आर. अम्बेडकर ने हिंदू राष्ट्र की अवधारणा को अस्वीकार किया था और चेतावनी दी थी कि यह देश के लिए आपदा होगा। आरएसएस की विचारधारा पर यह प्रहार व्यापक रूप से उनके विचारों और उनकी विचारधारा के प्रति विरोध को दर्शाता है।
कांग्रेस प्रवक्ता पवन खेड़ा ने मोहन भागवत के बयानों की निंदा करते हुए कहा कि आरएसएस और भाजपा ही असल में समाज को विभाजित करने का काम कर रहे हैं। उनका दावा है कि इन संगठनों की नीति और विचारधारा ने समाज में जाति और सांप्रदायिक आधार पर विभाजन को हवा दी है।
हाल की घटनाओं ने एक बार फिर से आरएसएस और भाजपा की भूमिका पर प्रश्न उभार दिए हैं, खासकर उनके राजनीतिक और सामाजिक प्रभावों के मद्देनजर। विपक्षी दल इस बात पर एकजुट हैं कि मोहन भागवत जैसी शख्सियत जब सार्वजनिक मंचों पर इस तरह के बयान देती हैं, तो उसका व्यापक असर होता है और ऐसे बयान भारतीय समाज के विविध पहलुओं के लिए खतरा पैदा करते हैं।
यह मसला अब केवल बयानबाजी तक सीमित नहीं रहा, बल्कि इसका चुनावी राजनीति और समाज पर भी गहरा असर है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि विचारधारा की यह लड़ाई लंबे समय तक जारी रह सकती है और यह देखना बाकी है कि भारतीय राजनीति में इसका अंततः क्या परिणाम होगा।
पिछले कुछ वर्षों में, देश भर में बढ़ती तनावपूर्ण स्थितियां और उत्पीडित समुदायों के अधिकारों के लिए संघर्ष की घटनाएं बढ़ी हैं। इस संदर्भ में विपक्ष की धारणा है कि आरएसएस और भाजपा की विचारधारा इस समस्या का मुख्य कारण है। ऐसे विचार भारत की सामाजिक एकता और विविधता पर गंभीर सवाल खड़ा करते हैं।
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Srinath Mittapelli
ये सब बयान तो हर दिन होते रहते हैं भाई लेकिन असली समस्या तो ये है कि हम अपने अंदर के डर को नहीं सुन पा रहे
हर कोई दूसरे को दोष दे रहा है लेकिन कौन है जो अपने घर में बैठकर सोचता है कि मैंने क्या बदला
आरएसएस या भाजपा या कांग्रेस कोई भी नहीं बदल सकता अगर हम खुद नहीं बदलें
मैंने एक गांव में देखा था जहां हिंदू और मुस्लिम दोनों एक साथ मिलकर दशहरा और ईद मनाते थे
उनके बीच कोई विभाजन नहीं था बस एक सामान्य इंसानियत थी
हमें बस इतना करना है कि अपने आसपास के छोटे छोटे संबंधों को बेहतर बनाएं
राजनीति को अपने घर के बाहर छोड़ दो
मैंने अपने बेटे को बताया कि वो अपने दोस्त की धर्म नहीं देखे बल्कि उसके साथ खेले
और वो अब उस दोस्त को अपना भाई मानता है
इतना ही काफी है
Kotni Sachin
यहाँ तक कि बयानों को भी अलग-अलग तरीके से पढ़ा जा रहा है… और ये तो बस एक बयान था, न कि कोई आदेश…
क्या हम इतने डरे हुए हैं कि एक व्यक्ति के शब्दों को भी धमकी के रूप में ले रहे हैं…?
क्या आपने कभी सोचा है कि भागवत जी ने बांग्लादेश की बात क्यों की…?
क्या वो आपको डरा रहे हैं…?
या आप खुद को डरा रहे हैं…?
मैं नहीं जानता कि आपको क्या डर है…
लेकिन एक बात तो जरूर है…
जब हम दूसरों के बयानों को बदलने की कोशिश करते हैं…
तो हम खुद को बदलने से बच रहे होते हैं…
और ये… ये तो सच है…
Nathan Allano
सुनिए, मैं यह नहीं कह रहा कि आरएसएस या भाजपा बिल्कुल सही हैं…
लेकिन क्या आपने कभी उनके लोगों को गांव में देखा है…?
जो बच्चों को पढ़ाते हैं…
जो बुजुर्गों की देखभाल करते हैं…
जो बाढ़ में बचाव कार्य करते हैं…
मैंने उत्तर प्रदेश में एक गांव में देखा था…
जहां एक आरएसएस कार्यकर्ता ने अपनी बहन के घर का एक कमरा दलित परिवार के लिए दे दिया…
और वो बहन भी उनके साथ खाती थी…
क्या ये विभाजन है…?
या ये इंसानियत है…?
हम सब बहुत आसानी से नाम लगा देते हैं…
लेकिन असली जिंदगी तो बहुत अलग होती है…
हमें बस थोड़ा और देखना होगा…
Guru s20
मैं तो बस एक बात कहना चाहता हूँ…
अगर हम सब अपने आसपास के लोगों के साथ अच्छा व्यवहार करने लगे…
तो किसी को भी बयान देने की जरूरत नहीं पड़ेगी…
हम खुद बदल जाएंगे…
और वो बदलाव देखकर दूसरे भी बदल जाएंगे…
ये राजनीति नहीं…
ये जीवन है…
Raj Kamal
अरे यार मैंने ये सब पढ़ा लेकिन मुझे एक चीज़ समझ नहीं आ रही…
क्या आरएसएस वाले वाकई दलितों के खिलाफ हैं…?
या ये सब बस एक राजनीतिक टारगेटिंग है…?
मैंने एक बार एक आरएसएस कार्यकर्ता से बात की थी…
वो बता रहा था कि उसने एक दलित बच्चे को पढ़ाया था…
और वो बच्चा अब इंजीनियर बन गया है…
तो क्या ये विभाजन है…?
या ये तो बस एक छोटी सी बात है…
मैं तो समझ नहीं पा रहा…
क्या हम बहुत ज्यादा भावनात्मक हो गए हैं…?
या ये सब बस ट्रेंड है…?
मैं तो बस एक आम इंसान हूँ…
मैं चाहता हूँ कि सब अच्छा हो…
लेकिन मुझे नहीं पता कि क्या सही है…
Rahul Raipurkar
यह एक स्पष्ट उदाहरण है जहाँ राजनीतिक शक्ति के विरोधी अपनी अपनी नैतिकता को अपने विरोधी के विचारों के खिलाफ अभिव्यक्त कर रहे हैं…
यह एक विचारधारागत युद्ध है…
और जिस तरह से विपक्ष इसे उठा रहा है…
वह एक जनतांत्रिक व्यवस्था के लिए अत्यंत खतरनाक है…
क्योंकि यह विचारधारागत विविधता के बजाय…
एक विचारधारागत एकरूपता की ओर धकेल रहा है…
अगर हम एक विचार को नकार देते हैं…
तो हम उसके बारे में सोचना बंद कर देते हैं…
और फिर हम वास्तविकता को नहीं देख पाते…
यह तो एक अंधविश्वास का उदाहरण है…
और अंधविश्वास…
हमेशा अंधेरे को बढ़ावा देता है…
PK Bhardwaj
इस संदर्भ में एक राजनीतिक-सामाजिक डायनामिक्स का विश्लेषण करना जरूरी है…
आरएसएस की विचारधारा को एक नैतिक अभिव्यक्ति के रूप में देखा जा सकता है…
जिसमें सामाजिक संगठन और आत्म-नियंत्रण की अवधारणा शामिल है…
लेकिन जब इसे राजनीतिक लाभ के लिए उपयोग किया जाता है…
तो यह एक अपराधी विचारधारा में बदल जाता है…
हमें यह समझना होगा कि विचार और उसके उपयोग में अंतर है…
क्या भागवत के बयान में विभाजन का इरादा था…?
या यह एक अस्पष्ट भाषा का उपयोग था…?
और क्या विपक्ष इसे जानबूझकर बढ़ा रहा है…?
यह एक गहरा सामाजिक अभियान है…
और हमें इसे बुद्धिमानी से समझना होगा…
Soumita Banerjee
अरे यार… ये सब तो बस एक बयान है…
मैं तो सोच रही थी कि ये लोग अपने दिमाग से बात कर रहे हैं या फिर ट्विटर के लिए लिख रहे हैं…
क्या कोई वाकई इतना गंभीर है…?
मैंने तो आज सुबह एक दोस्त को देखा…
जिसने अपने दादा के साथ चाय पी रखी थी…
और दादा ने उसे बताया…
कि जब वो छोटे थे…
तो हिंदू और मुस्लिम दोनों एक साथ खेलते थे…
और आज वो इस बारे में बात कर रहे हैं…
मैंने तो सोचा…
ये लोग बस ट्रेंड फॉलो कर रहे हैं…
और अपने फीड को बढ़ाने के लिए बयान बना रहे हैं…
😂
Navneet Raj
मैं तो बस एक बात कहना चाहता हूँ…
हम सब अपने आप को बहुत बड़ा समझ रहे हैं…
लेकिन असल में…
हम सब बस एक दूसरे के बारे में बहुत कम जानते हैं…
मैंने एक बार एक आरएसएस कार्यकर्ता से बात की…
उसने कहा…
कि वो अपने घर में एक दलित बच्चे को पढ़ाता है…
और वो बच्चा उसके घर का ही बच्चा बन गया है…
मैंने एक कांग्रेस कार्यकर्ता से बात की…
उसने कहा…
कि वो अपने गांव में एक मुस्लिम परिवार को निर्माण सामग्री देता है…
तो क्या हम इन लोगों को भूल गए…?
ये जो हम लोग बात कर रहे हैं…
वो बहुत बड़ी बातें हैं…
लेकिन असली बदलाव तो छोटे छोटे कदमों से होता है…
Neel Shah
हाँ बिल्कुल… आरएसएस तो बस नर्सरी से शुरू करके बच्चों को धोखा देते हैं…
और भाजपा उन्हें बाद में बर्बर बना देती है…
और फिर हम सब उनके खिलाफ बयान देते हैं…
लेकिन क्या हमने कभी सोचा…
कि ये बच्चे भी किसी के बेटे हैं…
और उनके माता-पिता भी उन्हें अच्छा बनाना चाहते हैं…
और अगर हम उनके बारे में इतना नफरत भरा विचार रखते हैं…
तो हम क्या बेहतर हैं…?
मैं तो बस एक बात कहना चाहती हूँ…
हम सब बहुत ज्यादा आलोचना करते हैं…
लेकिन खुद को बदलने के लिए कुछ नहीं करते…
और फिर हम दूसरों को दोष देते हैं…
क्या ये बच्चों के लिए एक अच्छा उदाहरण है…?
😭
shweta zingade
मैं तो बस ये कहना चाहती हूँ…
ये जो बयान हैं…
ये बस शब्द हैं…
लेकिन अगर हम एक दूसरे के साथ इंसानियत से बात करें…
तो क्या ये शब्द असर करेंगे…?
मैंने एक बार एक आदिवासी गांव में देखा…
जहां एक आरएसएस कार्यकर्ता ने एक बच्ची को पढ़ाया…
और वो बच्ची अब डॉक्टर है…
और उसने कहा…
कि उसकी दादी ने उसे बताया…
कि जब भी कोई अच्छा करता है…
तो वो अपनी धर्म नहीं देखता…
वो इंसान को देखता है…
और यही तो हमें सीखना है…
क्योंकि जब हम इंसानियत को भूल जाते हैं…
तो हम सब खो जाते हैं…
और इस देश का भविष्य भी खो जाता है…