2025 में भारतीय छात्रों की F‑1 वीज़ा आपातकाल: 45% अस्वीकृति, स्लॉट शून्य

2025 में भारतीय छात्रों की F‑1 वीज़ा आपातकाल: 45% अस्वीकृति, स्लॉट शून्य

जब अदर्श खण्डेलवाल, सह‑संस्थापक Collegify ने कहा कि 2025 में F‑1 वीज़ा के लिये कोई निश्चित अपॉइंटमेंट स्लॉट नहीं मिलता, तब ही भारत के छात्रों को सबसे बड़ा वीज़ा संकट झेलना पड़ रहा है। आधी साल की आधी तक अनुमोदन में 14.7% गिरावट आई, जबकि भारत का हिस्सा 43% तक गिरकर रिकॉर्ड‑निम्न पर पहुंच गया। अगस्त 2025 में अमेरिकी छात्र वीज़ा में 19% की साल‑दर‑साल गिरावट देखी गई, और भारतीय आवेदकों में यह गिरावट 45% तक पहुंच गई। यह आँकड़ा ही नहीं, बल्कि अध्ययनों के अनुसार राजीव खन्ना, Immigration.com के प्रबंधक वकील ने चेतावनी दी कि संभावित नियम परिवर्तन 420,000 से ज्यादा भारतीय छात्रों को प्रभावित कर सकता है। यह सब 2025 के मध्य‑मार्च में शुरू हुई अपॉइंटमेंट कमी से लेकर, ट्रम्प प्रशासन की कड़ी नीतियों तक की एक जटिल कहानी है, जो आजकल हर छात्र के भविष्य को अस्थिर कर रही है।

विज़ा संकट के वर्तमान आंकड़े

Open Doors 2024 रिपोर्ट के अनुसार, भारत में से अमेरिकी विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले छात्रों की संख्या 2023 में 2,34,500 से घटकर 2024 में 2,04,000 हो गई। इस गिरावट के पीछे मुख्य कारण हैं:

  • पहले छः महीनों में कुल अनुमोदन में 14.7% की गिरावट।
  • इंडिया‑शेयर में 43% की तीव्र गिरावट, जो अब तक का सबसे बड़ा झटका है।
  • अगस्त 2025 में भारतीय F‑1 आवेदकों की अस्वीकृति दर 45% तक पहुंची।
  • Collegify द्वारा परामर्शित 250 छात्रों में 50% को अस्वीकृति का सामना करना पड़ा।

किस कारण से बढ़ी अस्वीकृति दर?

अधिकांश अस्वीकृति सेक्शन 214(b) के तहत दी गई – इसका मतलब है कि कांसुलेट अधिकारी मानते हैं कि आवेदक का इरादा स्थायी तौर पर यू.एस. में रहना है। संजय राय, Hyderabad Overseas Consultants ने कहा, “सामान्यतः छात्र के अकादमिक और वित्तीय प्रोफ़ाइल मजबूत होते हैं, फिर भी क्वेस्ट‑इंटेज़न उत्पन्न हो रहे हैं।”

इसके अलावा, U.S. Department of Homeland Security द्वारा प्रस्तावित एक नियम परिवर्तन, जो Office of Management and Budget की समीक्षा में है, F, J और I वीज़ा‑होल्डर्स के लिये निश्चित अवधि तय कर देगा। इस बदलाव से छात्रों को हर कुछ साल बाद नवीनीकरण के लिये एप्लिकेशन देना पड़ेगा, और प्रक्रिया में कई महीने का विलंब हो सकता है।

शिक्षा संस्थानों और सलाहकारों की प्रतिक्रिया

हॉस्पिटल‑वाइड एटेंडेंस की तरह, कई अमेरिकी विश्वविद्यालयों ने भारतीय छात्रों को आकर्षित करने के लिये नए स्कॉलरशिप पैकेज पेश करने की घोषणा की। लेकिन Harvard University ने ट्रम्प प्रशासन के कुछ मांगों को अस्वीकार कर दिया, जिसके बाद ट्रम्प के “Joint Task Force to Combat Anti‑Semitism” ने $2.2 बिलियन ग्रांट और $60 मिलियन सरकार अनुबंधों को फ्रीज़ कर दिया। इस कदम ने कई छात्रों को भ्रमित कर दिया कि क्या वे अमेरिकी कैंपस में सुरक्षित महसूस करेंगे।

परामर्श फर्म Collegify ने कहा कि वे अब महीने में 250 से अधिक छात्रों को व्यक्तिगत रणनीति प्रदान कर रहे हैं: “आगे के महीनों में स्लॉट्स जून‑जुलाई में खुलेंगे, लेकिन वैकल्पिक तौर पर मई में कुछ सीमित स्लॉट उपलब्ध हो सकते हैं,” खण्डेलवाल ने कहा। इस बीच, कई कोचिंग सेंटरों ने फोकस बदलकर कैनडा, ऑस्ट्रेलिया और यूरोपीय देशों की ओर किया है।

आर्थिक व सामाजिक प्रभाव

शिक्षा निर्यात भारत के लिए एक बड़ा कमाई स्रोत है—प्रति छात्र औसत $30,000 ट्यूशन और खर्च मिलते हैं। 2024 में 2,04,000 छात्र कम होने से अनुमानित $6 अरब की आय में गिरावट आती है। इसके अलावा, अमेरिकी विश्वविद्यालयों की शोध टीमों को भी भारतीय प्रतिभा से फ़ायदा मिलता है; अब इस कमी से रिसर्च पब्लिकेशन्स और पेटेंट फ़ाइलिंग में भी असर पड़ रहा है।

राजीव खन्ना ने चेतावनी दी, “यदि स्थायी ‘duration of status’ नहीं रहे तो छात्रों को प्रत्येक वैयाकारी में नवीनीकरण के लिये भारी फीस और समय दोनों का बोझ उठाना पड़ेगा।” इस नीति‑परिवर्तन से भारत‑अमेरिका शैक्षणिक साझेदारी में गंभीर अंतराल आ सकता है।

भविष्य की दिशा – क्या बदल सकता है?

भविष्य की दिशा – क्या बदल सकता है?

कई विशेषज्ञ मानते हैं कि यदि ब्रोडबैंड वर्ल्ड‑वाइड ऑनलाइन कोर्सेज़ को बढ़ावा दिया जाए तो इस संकट का बफ़र हो सकता है। साथ ही, भारत सरकार ने आधिकारिक तौर पर “विदेशी शिक्षा नीति” में संशोधन का प्रस्ताव रखा है, जिसमें अमेरिकी वीज़ा प्रक्रिया को सरल बनाने के लिये लब्बो-डिप्लोमा कार्यक्रम शामिल है।

जब तक अमेरिकी कांसुलेट्स में स्थायी स्लॉट नहीं खुलते, छात्रों को “ऑन‑डिमांड” वीज़ा पार्किंग लॉट की तरह इंतज़ार करना पड़ेगा। इस बीच, International Institute of Education के डेटा-एनालिस्ट्स ने कहा, “यदि अगले साल भी इसी तरह की गिरावट जारी रही तो 2027 तक भारतीय छात्रों की कुल संख्या 1.5 लाख तक गिर सकती है।”

मुख्य तथ्य (Key Facts)

  • 2025 की पहली छः महीनों में F‑1 अनुमोदन 14.7% घटे।
  • भारत‑शेयर में 43% की ऐतिहासिक गिरावट।
  • अदर्श खण्डेलवाल (Collegify) के अनुसार 50% अस्वीकृति दर।
  • विज़ा स्लॉट्स जून‑जुलाई 2025 में फिर से खुलने की उम्मीद।
  • नया DHS‑नियम 420,000+ भारतीय छात्रों को प्रभावित कर सकता है।

Frequently Asked Questions

2025 में भारतीय छात्रों को F‑1 वीज़ा मिलने में सबसे बड़ी बाधा क्या है?

सबसे बड़ा मुद्दा है कांसुलेट में सीमित अपॉइंटमेंट स्लॉट्स और सेक्शन 214(b) के तहत अस्वीकृति। आवेदन के साथ मजबूत प्रोफ़ाइल भी अभी पर्याप्त नहीं है, क्योंकि अधिकारी स्थायी रहने की आशंका को प्राथमिकता दे रहे हैं।

क्या नई Homeland Security की नीति का प्रभाव केवल F‑1 वीज़ा तक सीमित है?

नहीं, प्रस्तावित नियम F, J और I वीज़ा‑होल्डर्स को भी प्रतिबंधित करेगा। इसका मतलब है कि अनुसंधान छात्र (J‑विज़ा) और इंटर्न (I‑विज़ा) भी हर कुछ साल बाद अपने वीज़ा को नवीनीकरण के लिये आवेदन करना होगा।

विदेशी शिक्षा की दूसरी दिशा में छात्रों को कौन‑से विकल्प उपलब्ध हैं?

कनडा, ऑस्ट्रेलिया और यूके ने हाल ही में वीज़ा प्रोसेसिंग को तेज किया है, और कई भारतीय छात्रों ने इन देशों में स्नातक एवं पोस्ट‑ग्रेजुएट कार्यक्रमों के लिये आवेदन करना शुरू कर दिया है।

विज़ा संकट से भारतीय विश्वविद्यालयों की आय पर क्या असर पड़ेगा?

यदि भारतीय छात्रों की संख्या 2025‑2027 में 30% तक घटती रही तो यू.एस. कॉलेजों की विदेशी छात्र आय में लगभग $4 अरब की कमी होगी, जो कई संस्थानों के बजट समायोजन को आवश्यक बनाएगा।

आगामी महीनों में वीज़ा स्लॉट कब खुलने की संभावना है?

कंसुलेट ने संकेत दिया है कि मई में कुछ बारीकी से बंटे स्लॉट उपलब्ध हो सकते हैं, लेकिन मुख्य तौर पर जून‑जुलाई 2025 में बड़े पैमाने पर slots फिर से खुलेगा। छात्रों को निरंतर अपडेट के लिये कांसुलेट की आधिकारिक वेबसाइट देखनी चाहिए।

टिप्पणि

  • Subi Sambi
    Subi Sambi

    विज़ा संसाधनों की कमी को सरकार लापरवाह नहीं मान सकती, क्योंकि इसका सीधा असर छात्रों के भविष्य पर पड़ता है। कांसुलेट में स्लॉट्स शून्य होने का मतलब है कि श्रेष्‍ट शैक्षणिक क्षमतायें भी अब फ़्लाइट नहीं पकड़ पाएँगी। यह आंकड़ा सिर्फ आँकड़ाओं से नहीं, बल्कि हजारों परिवारों की आशा पर भी ठेलेगा। यदि नीति में जल्द परिवर्तन नहीं हुआ तो भारत‑अमेरिका शैक्षणिक साझेदारी को गहरा झटका लगेगा। इस स्थिति में छात्रों को वैकल्पिक देशों की ओर रूख मोड़ना ही समझदारी होगी।

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