सरदार वल्लभभाई पटेल, जिन्हें लौह पुरुष के नाम से भी जाना जाता है, का नाम भारत के इतिहास में उन नेताअों में लिया जाता है जिन्होंने भारत के स्वतंत्रता के समय महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। उनकी छवि एक कठोर और दृढ़ राजनीतिज्ञ की रही है, जिन्होंने भारत के रियासतों का एकीकरण सुनिश्चित किया। हालांकि, उनके मुस्लिम समुदाय के प्रति दृष्टिकोण को अक्सर गलत समझा गया है, जिसमें उनके विचारों की जटिलताओं को नकारा नहीं जा सकता।
पटेल और गांधी के बीच की मित्रता भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक अद्भुत उदाहरण है। दोनों ही 'एक भारत' का सपना देखते थे, लेकिन उनकी रणनीतियों में अंतर था। महात्मा गांधी जहां हिंदू-मुस्लिम एकता के पक्षधर थे, वहीं पटेल को प्रागमैटिक दृष्टिकोण के लिए जाना जाता था। विभाजन की परिस्थितियों में, जहां भारत और पाकिस्तान का गठन हुआ, पटेल ने स्पष्ट रूप से धार्मिक संप्रदायवाद के खिलाफ अपनी आवाज उठाई थी। उनके लिए रियासतों का भारत में विलय सिर्फ एक राजनीतिक अभियान नहीं था, बल्कि राष्ट्रीय एकता की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था।
हिंदू-मुस्लिम रिश्तों में तनावपूर्ण समय के दौरान, पटेल को मुस्लिम विरोधी के रूप में देखा जाता था। हालांकि, उनका दृष्टिकोण ऐतिहासिक वास्तविकता पर आधारित था। वे जानते थे कि भारत को जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व वाली कांग्रेस पार्टी के रास्ते पर चलना होगा, जिसमें धार्मिक संप्रदायवाद की कोई जगह न हो। उन्होंने खुलेआम अपनी नीतियों का समर्थन किया जो मुस्लिम समुदाय के कल्याण की दिशा में थीं। उनका ऐसा मानना था कि भारतीय मुस्लिम समुदाय भी भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन का एक अभिन्न हिस्सा था और उन्हें अन्य नागरिकों के समान अधिकार और आदर मिलना चाहिए।
विभाजन के समय में, पटेल ने यह कहा था कि वह मुस्लिम समुदाय के सच्चे मित्र हैं। उन्होंने अपनी एक प्रसिद्ध सभा में कहा था कि कोई भी व्यक्ति अगर उन्हें मुस्लिम विरोधी कहता है तो वह सरासर गलत है। यह भाषण उस समय दिया गया था जब विभाजन की आग में भारत जल रहा था और भारत का समाज धार्मिक उन्माद में डूबा हुआ था। पटेल के इस भाषण से यह स्पष्ट होता है कि उससे पहले उनके बारे में बनी धारणा को बदलने की कोशिश हो रही थी।
पटेल का यह दृष्टिकोण था कि सभी भारतीय, चाहे वे किसी भी धर्म को मानने वाले हों, समान हैं और भारत की अखंडता और एकता के लिए उन्हें एकजुट होना आवश्यक है। रियासतों के एकीकरण के उनके अभियान में, अनेक मुस्लिम शासकों ने भारतीय राज्य के साथ विलय का विरोध किया था। लेकिन पटेल ने धैर्य और समझदारी से स्थिति को संभाला और अधिकांश रियासतों का सफलतापूर्वक भारतीय संघ में विलय कर दिया।
31 अक्टूबर को हर वर्ष राष्ट्रीय एकता दिवस के रूप में मनाया जाता है, जो सरदार पटेल की जयंती का दिन है। यह दिवस भारतीय एकता और अखंडता के लिए उनके योगदान को सम्मानित करने के लिए मनाया जाता है। पटेल का इस महान देश प्रेम के प्रति समर्पण हमेशा के लिए आदरणीय रहेगा और उन्होंने दिखाया कि कैसे विभाजन और धार्मिक संकट के समय में भी एकता स्थापित की जा सकती है।
यह दिवस हमें याद दिलाता है कि हमें न सिर्फ अपनी भाषाई और सांस्कृतिक विविधताओं का सम्मान करना चाहिए, बल्कि उन चुनौतियों का भी सामना करना चाहिए जो भारत की एकता को खतरे में डाल सकती हैं। पटेल ने एक ऐसा खाका तैयार किया जिसमें हर भारतीय को समान अधिकार और जिम्मेदारियाँ प्राप्त हो सकें, और यह हमारे देश की विविधताओं को सम्मानित करने का एक प्रेरणादायक उदाहरण है।
आज के दौर में, जब हमारे समाज कई स्तरों पर विभाजन का सामना कर रहे हैं, पटेल की विरासत हमें इस बात का संकेत देती है कि अखंडता और एकता के लिए कितनी जरूरी हैं। उनकी कारण स्थापित भारत की एकता हमें याद दिलाती है कि हमें अंतर्राष्ट्रीय और धार्मिक बाधाओं के परे जाकर अखंड भारत का सपना जीना है। इस दिशा में, सरदार पटेल के इस योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। उनके राजनीतिक कौशल और देश प्रेम को याद रखने के रास्ते के रूप में, राष्ट्रीय एकता दिवस हमारे लिए न सिर्फ उनके योगदान को याद करने का मौका है, बल्कि अपने आपको यह याद दिलाने का भी कि हम भारतीय के रूप में क्या हासिल कर सकते हैं।
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Srinath Mittapelli
पटेल ने जो किया वो बस राजनीति नहीं थी वो एक असली नेता का काम था। आज के वक्त में ऐसे लोगों की कमी है जो धर्म के बजाय देश को पहले रखें।
कोई भी अगर उन्हें मुस्लिम विरोधी कहता है तो वो बस अपनी भावनाओं को समझ नहीं पा रहा।
Kotni Sachin
पटेल... वो तो एक ऐसा इंसान था, जिसने अपने विचारों को अक्सर शब्दों में नहीं, बल्कि कार्यों में दिखाया... और ये बात आज भी कमाल की है... जब सब कुछ ट्वीट और वीडियो में जाता है... वो बस काम कर गए...
Nathan Allano
मैंने पढ़ा है कि पटेल ने बिहार में एक गांव में मुस्लिम अधिकारियों को नौकरी दी थी जब बाकी सब भाग रहे थे... उन्होंने अपने घर के बाहर एक मस्जिद के लिए जमीन भी दी थी... ये सब आज के लोग भूल गए हैं... वो सिर्फ एक नेता नहीं थे, वो एक इंसान थे... जिन्होंने अपने दिल से सोचा था...
Guru s20
मैं तो सोचता हूं कि आज के दिनों में जब हर कोई अपने धर्म के नाम पर अपनी पहचान बना रहा है... पटेल की याद आती है... उन्होंने बस एक भारत की बात की... और वो बहुत कम लोगों ने समझा... लेकिन उन्होंने काम कर दिखाया...
Raj Kamal
मुझे लगता है कि पटेल के बारे में जो भी लिखा गया है वो सब अच्छा है लेकिन क्या हम भूल रहे हैं कि उनके दौर में भी कई मुस्लिम नेता उनके खिलाफ थे और उन्होंने उन्हें भी शामिल किया जैसे कि जावेद अली और अब्दुल कलाम जैसे लोग... और ये बात कोई नहीं बताता क्योंकि ये बात अभी भी बहुत टेंशन वाली है... और अगर हम इतिहास को देखें तो उन्होंने जिन रियासतों को जोड़ा उनमें बहुत सारे मुस्लिम शासक थे जिन्होंने उन्हें दरवाजा बंद कर दिया था लेकिन उन्होंने उन्हें गले लगा लिया... और ये बात कोई नहीं बताता क्योंकि ये बात बहुत ज्यादा जटिल है और लोग बस अपने नारे चिल्लाना चाहते हैं...
Rahul Raipurkar
पटेल की विरासत को राष्ट्रीय एकता के नाम पर रूढ़िवादी राजनीति के लिए उपयोग किया जा रहा है। इतिहास का चयनात्मक उपयोग एक ऐसा तंत्र है जो वास्तविकता को नकारता है। उनके दृष्टिकोण को आधुनिक राष्ट्रवाद के संदर्भ में विश्लेषण नहीं किया जा सकता। इतिहास एक अनुभव है, न कि एक प्रचार उपकरण।
PK Bhardwaj
उनका दृष्टिकोण एक वास्तविक नेता का था-न तो आदर्शवादी, न ही अतिवादी। एकीकरण एक राजनीतिक अभियान नहीं, बल्कि एक सामाजिक आवश्यकता थी। उन्होंने भाषा, धर्म, और सांस्कृतिक विविधता को एक संरचनात्मक एकता के लिए समायोजित किया। आज के लोग इसे सिर्फ एक नारा बना रहे हैं।
Soumita Banerjee
फिर भी... क्या वो वाकई इतने अच्छे थे? मुझे लगता है कि ये सब बस एक निर्मित लीजेंड है। आज के दौर में इतिहास को बाजार में बेचा जा रहा है। पटेल भी एक ब्रांड बन गए हैं।
Navneet Raj
अगर आज कोई नेता उतना दृढ़ और विवेकी हो जाए तो हमारा देश बहुत बेहतर हो जाएगा। पटेल ने नहीं बोलकर काम किया... और इसीलिए उनकी याद आज भी जीवित है।
Neel Shah
अरे यार... अब फिर से पटेल की बात? 😒 आज तो बस एक नया नारा बना दिया... जब वो जिंदा थे तो उन्होंने बहुत कम लोगों को बचाया... अब जब वो मर चुके हैं तो सब उनके नाम से फेसबुक पोस्ट बना रहे हैं 😂
shweta zingade
मैंने एक बार गुजरात में एक छोटे से गांव में एक पुरानी मस्जिद देखी थी... जिसके दरवाजे पर लिखा था-'इस जमीन का दान सरदार पटेल ने किया'... वो मस्जिद अब भी खड़ी है... और वहां नमाज पढ़ते हैं... जो लोग आज पटेल को बदनाम करते हैं... वो उस मस्जिद के बारे में नहीं जानते... और ये बात मुझे रोने के लिए मजबूर कर देती है... 🥺
Pooja Nagraj
इतिहास के निर्माण की प्रक्रिया में व्यक्तिगत नेतृत्व का अतिरंजित महत्व देना, एक आधुनिक राष्ट्रीय अहंकार का प्रतीक है। पटेल के निर्णयों का विश्लेषण आर्थिक, सामाजिक और साम्राज्यवादी ढांचे के संदर्भ में होना चाहिए, न कि भावनात्मक श्रद्धा के साथ। इतिहास देवताओं की कथाओं से नहीं, बल्कि विश्लेषण से जीवित रहता है।