शरण शर्मा द्वारा निर्देशित 'मिस्टर & मिसेज़ महि' एक भावनात्मक कहानी है जिसमें राजकुमार राव और जाह्नवी कपूर ने मुख्य भूमिका निभाई है। फिल्म की कहानी महेंद्र अग्रवाल (राजकुमार राव) और महिमा अग्रवाल (जाह्नवी कपूर) के इर्द-गिर्द घूमती है जो क्रिकेट के प्रति गहरे जुनून वाले दो व्यक्ति हैं।
कहानी का मुख्य बिंदु यह है कि दोनों किरदार अपने-अपने परिवारों के दबाव में अपने क्रिकेट के सपनों को छोड़ देते हैं। महेंद्र, अपने पिता (कुमुद मिश्रा) के दबाव में, क्रिकेट छोड़ कर एक दुकान चलाना शुरू करता है और महिमा, अपने पिता के कहने पर डॉक्टर बन जाती है। फिल्म उनके भावनात्मक संघर्षों और क्रिकेट की दुनिया में वापसी के प्रयासों को दर्शाती है।
इस फिल्म की कहानी केवल क्रिकेट के खेल की नहीं है, बल्कि इसमें ऐसी भावनाओं का भी समावेश किया गया है जो हर एक इंसान को अपने जीवन में कभी न कभी महसूस होती हैं। महेंद्र और महिमा के किरदार अपने-अपने परिवारों की जिम्मेदारियों और समाज के दबाव को समझते हुए अपनी खुद की इच्छाओं को संजोते हैं।
जहां महेंद्र को अपने पिता की इच्छा के खिलाफ क्रिकेट को छोड़ना पड़ता है और अपने परिवार की दुकान संभालनी पड़ती है, वहीं महिमा को डॉक्टर बनने का सपना देखना पड़ता है जो उसके पिता की अपेक्षा होती है। इन दोनों की संघर्ष की कहानी हमें यह सोचने पर मजबूर करती है कि अपने सपनों को पूरा करना कितना जरूरी है और कितनी बड़ी कुर्बानियां देनी पड़ती हैं।
राजकुमार राव और जाह्नवी कपूर ने अपने किरदारों को बखूबी निभाया है। राजकुमार राव ने महेंद्र के रूप में अपनी भूमिका को पूरे समर्पण के साथ निभाया है, जो एक ऐसे व्यक्ति का संघर्ष दिखाता है जो अपने सपनों को छोड़ कर परिवार की जिम्मेदारियों को निभा रहा है। जाह्नवी कपूर ने महिमा के किरदार में एक ऐसे व्यक्ति की भूमिका निभाई है जो अपने खुद के सपनों और परिवार की अपेक्षाओं के बीच जूझती है।
कुमुद मिश्रा ने महेंद्र के पिता की भूमिका में अपनी छाप छोड़ी है और उनके अभिनय ने दर्शकों के दिल में एक जगह बनाई है। फिल्म की पटकथा और सिनेमाटोग्राफी भी अच्छी तरह से की गई है, जो कहानी के साथ सामंजस्य बिठाते हैं और इसे और भी प्रभावी बनाते हैं।
हालांकि फिल्म में क्रिकेट के प्रति जुनून और संघर्ष को दिखाया गया है, लेकिन इसमें खेल की आत्मा की कमी अनुभव की जा सकती है। यह फिल्म भावनाओं से भरी है, जिसमें रोमांस, गुस्सा, जलन और निराशा की झलकियाँ देखने को मिलती हैं। फिल्म एक ड्रामा है जिसमें खेल का तत्व कमज़ोर है, लेकिन भावनात्मक पहलू इसे एक ध्यान देने योग्य फिल्म बनाता है।
फिल्म की लंबाई और उसकी कहानी का विस्तार दर्शकों को बांधे रखने में सक्षम हैं। दर्शक इसे अपने परिवार के साथ बैठ कर देख सकते हैं और इसमें दिखाई गई जीवन की सच्चाइयों से आसानी से जुड़ सकते हैं।
अंत में, 'मिस्टर & मिसेज़ महि' क्रिकेट के खेल के बजाय जीवन के खेल के बारे में अधिक कहती है। यह फिल्म उन सबके लिए है जो अपने जीवन में अपने सपनों को छोड़ कर परिवार और समाज के दबाव को समझते हैं और उनके साथ जीने का प्रयास करते हैं। राजकुमार राव और जाह्नवी कपूर की अदाकारी, कुमुद मिश्रा का समर्थन और फिल्म की अच्छी पटकथा इसे देखने लायक बनाती है। अगर आप भावनात्मक और संघर्षमय कहानियों को पसंद करते हैं, तो यह फिल्म आपके समय के लायक है।
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Dipak Moryani
फिल्म में क्रिकेट का जुनून दिखाया गया है, लेकिन वास्तविक मैच के दौरान का वो जोश, वो चीखें, वो एक्साइटमेंट कहाँ है? बस बातें कर रहे हैं, बल्ला नहीं चल रहा।
Jaya Bras
राजकुमार राव का अभिनय तो बहुत अच्छा है लेकिन जाह्नवी कपूर का किरदार बिल्कुल फ्लैट लगा। डॉक्टर बनने का दबाव? अरे भाई, हर लड़की को ऐसा ही होता है।
Vijay Kumar
जीवन का खेल खेलना है तो खेलो। क्रिकेट छोड़ देना भी एक फैसला है। लेकिन फिल्म ने उस फैसले की गहराई नहीं छूई।
Abhishek Rathore
मैंने ये फिल्म अपने पापा के साथ देखी। उन्होंने रोते हुए कहा, 'ये मेरी कहानी है।' कभी-कभी फिल्में तो दर्शकों के दिलों में बस जाती हैं, बाकी सब बस बातें हैं।
Rupesh Sharma
अगर तुम्हारे पास सपना है तो उसे छोड़ना आसान है, लेकिन उसे फिर से पकड़ना बहुत मुश्किल होता है। ये फिल्म बस यही बताती है। बस एक बार अपने दिल की आवाज़ सुनो।
Rajeev Ramesh
मैं एक शिक्षाविद् हूँ और इस फिल्म के सामाजिक और मनोवैज्ञानिक पहलुओं का विश्लेषण करने के लिए इसे अपने कोर्स में शामिल करने का विचार कर रहा हूँ। यह एक उत्कृष्ट शैक्षिक सामग्री है।
Arun Sharma
इस फिल्म का निर्माण एक विशिष्ट वर्ग के दर्शकों के लिए हुआ है जो भावनात्मक नाटकों के प्रति संवेदनशील हैं। यह एक व्यापारिक सफलता नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक घटना है।
Ravi Kant
भारत में हर बच्चे का सपना होता है क्रिकेटर बनने का, लेकिन जब वो बड़ा होता है तो परिवार का दबाव उसे डॉक्टर या इंजीनियर बना देता है। ये फिल्म वास्तविकता को दर्शाती है।
Harsha kumar Geddada
फिल्म में जो भावनात्मक अंतराल दिखाया गया है, वो केवल एक व्यक्ति के जीवन का नहीं, बल्कि एक पूरी पीढ़ी के जीवन का प्रतिबिंब है। जब तक हम अपने सपनों को दबाए रखेंगे, तब तक हम अपने आप को नहीं जान पाएंगे। यह फिल्म एक दर्पण है, जिसमें हम सब देख सकते हैं कि हम कौन हैं। इसके बाद कोई भी बात बेकार है।
sachin gupta
मैंने इसे Netflix पर देखा। बहुत बोरिंग। बस एक और भारतीय ड्रामा जिसमें लोग रोते हैं और गाने बजते हैं। क्रिकेट का कुछ भी नहीं।
Shivakumar Kumar
ये फिल्म बस एक ड्रामा नहीं, ये तो एक अंतर्दृष्टि है। जैसे एक बूढ़ा आदमी बैठा हो और अपने बचपन के बल्ले को रगड़ रहा हो, जिसमें अभी भी धूल नहीं जमी हो। वो बल्ला तो अभी भी ज़िंदा है, बस उसके हाथ में नहीं।
saikiran bandari
क्रिकेट नहीं भावनाएं भावनाएं भावनाएं फिल्म बोरिंग